@विनोद भगत
कौन है जो ऐसी चाल चल रहा है सियासत में अपनी निजामत की ख्वाहिश पूरी न होने पर दूर बैठकर कांटे से कांटा निकालने में उसे महारथ हासिल है। निजाम बनने की अधूरी चाहत का बदला गिन गिन कर ले रहा है। जब निजाम बदला जा रहा था तो गद्दी से उतारने से पहले तत्कालीन निजाम की पसंद पूछी गई। गद्दी से उतरने वाला निजाम समझ चुका था कि अब उसकी रुखसती तयशुदा है। निजाम से पूछा गया, ऐ, जाते हुये निजाम, तेरी इतने वर्षों की खिदमत का इनाम दिया जाता है। बोल उसका नाम जिसे गद्दीनशीं करने की ख्वाहिश है।
जाता हुआ निजाम बस इतना ही बोला, हूजूरे आला, मेरी खिदमत का बस इतना ही सिला दो। जिसका मै नाम बताऊं उसे छोड़कर किसी को भी निजामत सौंप दो। “,
हूजूरेआला को बगावत का अंदेशा था। गद्दी से उतरते हुये निजाम की दरख्वास्त भी माननी थी। निजामत की आस में बैठे शख्स को दरकिनार कर एक ऐसे चेहरे को निजामत सौंप दी जिसके बारे में हूजूरेआला ने ख्वाब में भी न सोचा था।
अब चालें शुरू हो गई। नये निजाम को पुराने निजाम के फैसलों पर शमसीर चलवाई गई और एक के बाद एक को काटने का काम शुरू करवाया गया। नये और पुराने निजाम को भिड़ाकर अपना रास्ता कौन साफ करना चाहता है?यह सवाल सियासी गलियारों में तैर रहा है।