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परमाणु हथियार, शरिया कानून और लेबनान की वो जंग… कभी दोस्त रहे इजराइल और ईरान की दुश्मनी की असल वजह क्या है?

@शब्द दूत ब्यूरो (14 अप्रैल 2024)

कभी दोस्त रहे ईरान और इजराइल आज जंग लड़ रहे हैं. शनिवार रात को ईरान ने इजराइल पर सीधा हमला कर दिया. एक के बाद एक मिसाइलें दागी. ड्रोन से हमला किया. भले ही इस हमले को इजराइल द्वारा सीरिया के ईरानी दूतावास पर 1 अप्रैल को किए अटैक का जवाब कहा जा रहा है, लेकिन दोनों की दुश्मनी पुरानी है. जो देश कभी दोस्ती के लिए जाने जाते थे वो आज दुश्मनी निभाने के लिए जंग के मैदान में उतर चुके हैं.

दोनों देशों के बीच की दुश्मनी को समझने के लिए पहले थोड़ा सा इतिहास समझना होगा. 1948 में मिडिल ईस्ट में फिलीस्तीन की जगह पर इजराइल नाम का यहूदी देश बना. मुस्लिम देशों ने इसका विरोध शुरू किया. मिडिल ईस्ट के अधिकतर मुस्लिम देशों ने इजराइल को मान्यता देने से मना कर दिया. यह वो दौर था जब तुर्किए के बाद ईरान ऐसा दूसरा मुस्लिम राष्ट्र था जिसने इजराइल को एक देश के तौर पर स्वीकार किया. दोनों दोस्त थे, लेकिन शुरुआती दौर में दोनों इसे जाहिर नहीं किया, लेकिन अंदरूनी तौर पर एक-दूसरे की मदद करते रहे.

कैसे दोस्त बन गए दुश्मन

दोनों के बीच दुश्मनी की नींव 1979 में हुई ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद पड़ी. इस क्रांति के बाद ईरान को इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया. इसे दुनिया की ऐतिहासिक क्रांति कहा गया. जिसके बाद पहलवी वंश का अंत हुआ. अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी को ईरान के सर्वोच्च नेता की गद्दी सौंपी गई.

ईरान में इस्लामिक सरकार बनने के बाद शरिया कानून लागू हो गया. यह वो समय था जब ईरान में करीब एक लाख यहूदी थे, इसके बावजूद खुमैनी ने देश को इस्लामिक घोषित कर दिया. खुमैनी के दौर से ही ईरान का रुख धीरे-धीरे इजराइल विरोधी होने लगा. दोनों देशों के बीच तनाव की खबरें आने लगीं. हालात इतने बिगड़ने लगे कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहां जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. दूतावास बंद कराए गए.

इस तरह गहरी होती गई दुश्मनी

दोनों देशों के बीच तनाव इस कदर बढ़ने लगा कि इसका असर मिडिल ईस्ट के दूसरे देशों पर होने लगा. एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिश करने लगे. लेकिन दुश्मनी यहीं नहीं रुकी. 2006 में लेबनान युद्ध में ईरान ने उसके साथ खड़ा रहा. यह जंग इराजइल के विरोध में थी.

ईरान ने कई ऐसे देशों के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया जिससे उसका रुतबा बढ़े. ईरान ने इराक, पाकिस्तान, सीरिया के कई देशों के गुट को समर्थन देता रहा. इजराइल इसे गलत मानता रहा और दुश्मनी की खाईं गहरी होती रही.

परमाणु हथियार हासिल करने की जद्दोजहद भी बनी वजह

ऐसा नहीं है कि ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद इजराइल ने दोस्ती को बरकरार रखने की कोशिश नहीं की. शुरुआती दौर में इजराइल ईरान को हथियार सप्लाई करके दोस्ती को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहा था. इसकी एक वजह भी थी. दरअसल, ईराक उग्र हो रहा था. खबरें आ रही थीं कि सद्दाम हुसैन की अगुआई में इराक परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहा है. इससे बचाव के लिए इजराइल ईरान के साथ अपने सम्बंधों को मजबूत रखना चाहता था, लेकिन यह कोशिश लम्बे समय तक नहीं चल पाई.

इराक से जंग के बाद ईरान ने अपना फोकस परमाणु हथियार हासिल करने पर शुरू कर दिया. 2002 में इसका खुलासा हुआ. अमेरिका ने इसका विरोध किया. इजराइल को अब ईरान से भी साफ खतरा महसूस होने लगा था. इजराइल नहीं चाहता था कि मिडिल ईस्ट के देशों में परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन हालात संभल नहीं रहे थे. नतीजा, दोनों के सम्बंध बिगड़ने गए और कट्टर दुश्मन बन गए.

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