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लोकसभा चुनाव: सीट शेयरिंग में कैसे हिल गई हैं INDIA गठबंधन की चूलें

@शब्द दूत ब्यूरो (29 मार्च 2024)

लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है. पहले चरण की 102 सीट पर नामांकन खत्म हो चुका और अब दूसरे चरण सीटों के लिए पर्चा भरने की प्रक्रिया चल रही है. बीजेपी और उसके सहयोगी दल अपने उम्मीदवारों के लिए चुनावी प्रचार भी शुरू कर दिया है जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन अभी भी सीट शेयरिंग में उलझा हुआ है. बिहार में अब कहीं जाकर आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट के बीच शुक्रवार को सीट बंटवारे पर मुहर लग सकी है, लेकिन महाराष्ट्र में अभी भी इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच शह-मात जारी है. ऐसे में इंडिया गठबंधन सीट शेयरिंग में ही उलझा हुआ है तो चुनाव में कम उतरेगा?

पीएम मोदी को सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए विपक्ष के 28 दलों ने मिलकर दस महीने पहले पटना में INDIA गठबंधन की बुनियाद रखी था, लेकिन चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही विपक्षी कुनबा बिखरने लगा. विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने नीतीश कुमार पहले ही इंडिया गठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए का हिस्सा बन गए, जो एक बड़ा झटका था. इसके उसके सीट शेयरिंग का सिलसिला शुरू होते ही एक के बाद एक सहयोगी दलों ने साथ छोड़ना शुरू कर दिया.

जयंत चौधरी की आरएलडी ने इंडिया गठबंधन से अलग होकर बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए खेमे के साथ खड़े हो गए. जेडीयू-आरएलडी के अचानक से एनडीए में शामिल होना विपक्षी गठबंधन के लिए बहुत बड़ा झटका था. महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी अकेले दम पर जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ रह ही है तो टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी भी बंगाल में एकला चलो की राह पर हैं. अखिलेश यादव से लेकर लालू प्रसाद यादव और उद्धव ठाकरे ने सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस को सियासी तौर पर घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया. इसके बाद भी महाराष्ट्र में सीट बंटवारे की घोषणा नहीं हो सकी. इस तरह सीट शेयरिंग के मामला सुलझाने में इंडिया गठबंधन के चूल्हे हिल गए हैं.

दिल्ली-गुजरात-हरियाणा में सहमति बनी, लेकिन पंजाब में नहीं

इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर अरविंद केजरीवाल के साथ काफी मशक्कत के बाद दिल्ली-गुजरात-हरियाणा में कांग्रेस के साथ सहमति बनी, लेकिन पंजाब में दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. अखिलेश यादव के साथ सीट बंटवारे पर तालमेल तो बैठाने का काम किया, लेकिन कांग्रेस के हिस्से में 17 सीटें आई हैं, जिसमें अमेठी-रायबरेली को छोड़कर किसी भी सीट पर उसके लिए समीकरण पक्ष में नहीं दिख रहे हैं. सपा छोड़कर कांग्रेस में आए रवि वर्मा की बेटी पूर्वी वर्मा को चुनाव लड़ने के लिए लखीमपुर खीरी सीट नहीं मिल सकी और न ही सलमान खुर्शीद जैसे दिग्गज नेता की परंपरागत सीट मिली.

बिहार में आरजेडी के साथ कांग्रेस को सीट शेयरिंग करने के लिए सबसे ज्यादा मशक्कत करना पड़ा, तब कहीं जाकर शुक्रवार को सीट बंटवारे पर मुहर लगी है. बिहार में कांग्रेस को 9 सीटें मिली, लेकिन पूर्णिया और बेगूसराय सीट लालू यादव ने उन्हें नहीं दिया. इस वजह से पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की उम्मीदों को झटका लगा है, जो कांग्रेस के सियासी भविष्य के लिए बेहतर नहीं माना जा रहा है. औरंगाबाद सीट भी आरजेडी ने अपने पास रखा है, जहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता निखिल कुमार के चुनाव लड़ने के अरमानों पर पानी फिर गया. पूर्णिया सीट आरजेडी के हिस्से में जाने के चलते पप्पू यादव के बागी होने से आसार भी दिख रहे हैं.

महाराष्ट्र में अभी भी अटका है सीट शेयरिंग का फॉर्मूला

महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के तहत अभी तक सीट शेयरिंग पर फाइनल मुहर नहीं लग सकी. गठबंधन में फिलहाल कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना (यूबीटी) शामिल है. प्रकाश अंबेडकर की पार्टी को गठबंधन में भी लेने की कवायद की गई, लेकिन अभी तक कुछ तय नहीं है. न ही सीट शेयरिंग पर अभी सहमति बन सकी है और न ही प्रकाश अंबेडकर को लेने पर. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान शुरू कर दिया है तो कुछ सीटों पर कांग्रेस ने भी प्रत्याशी उतार दिए हैं. इसके चलते कशमकश की स्थिति बनी हुई है.

ममता बनर्जी के अलग होने के बाद बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट के बीच दोस्ती परवान चढ़ी, लेकिन अभी तक सीट शेयरिंग पर फाइनल मुहर नहीं लगी. कांग्रेस और लेफ्ट दोनों ही अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतार रही हैं जबकि केरल में पहले से ही दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. लेफ्ट के साथ कांग्रेस का बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान में गठबंधन हुआ है, लेकिन बंगाल क्या होगा, यह तय नहीं है.

इंडिया गठबंधन बन गया यूपीए?

बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुए दल अब जिस तरह एक-एक कर छोड़ रहे हैं और क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ ही सीटों का बंटवारे को लेकर पेंच फंसा हुआ है, जिसके चलते अब इंडिया गठबंधन पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं. इंडिया गठबंधन कहीं लोकसभा चुनाव होने तक यूपीए बनकर न रह जाए. यह बात ऐसी ही नहीं कही जा रही है, क्योंकि जिस तरह से एक के बाद एक दल छोड़कर जा रहे हैं और अभी फिलहाल जो बचे हैं, वो दल वहीं है, जो कभी कांग्रेस के अगुवाई वाला यूपीए गठबंधन का हिस्सा रहे हैं.

2004 में सोनिया गांधी ने बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का गठन किया था. कांग्रेस ने बिहार में आरजेडी-एलजेपी-एनसपी के साथ महाराष्ट्र में एनसीपी, झारखंड में जेएमएम-आरजेडी, आंध्र प्रदेश में बीआरएस और तमिलनाडु में डीएमके-एमडीएमके-पीएमके, जम्मू-कश्मीर में पीडीपी, पूर्वोत्तर के मणिपुर और गोवा में एनसीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया था, लेकिन आज सियासत बदल चुकी है. पीएम मोदी के राजनीतिक उभार के बाद कांग्रेस की सियासी जमीन सिमट गई है और क्षेत्रीय दल भी कमजोर पड़े हैं. दस महीने पहले जिस धूमधाम के साथ इंडिया गठबंधन बना था, वो अब बिखरा हुआ और बिना तालमेल का दिख रहा है.

अभी तक पूरे उम्मीदवारों का ऐलान नहीं

इंडिया गठबंधन अभी तक देश भर की लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान तक नहीं कर सकी. इतना ही नहीं गठबंधन की सामूहिक रैली भी नहीं हो सकी है जबकि पीएम मोदी चुनावी अभियान की कमान संभाल रखी है. दक्षिण भारत में पीएम मोदी ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं. इसके अलावा एनडीए के सहयोगी दल भी चुनावी प्रचार में उतर गए हैं. बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने कैंडिडेट के नाम की घोषणा कर दी है जबकि इंडिया गठबंधन अभी तक माथापच्ची कर रहा है.

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