आज का शीर्षक पढ़कर तय है कि इंदौर के लोग बिलबिला जायेंगे ,लेकिन जो सच है सो सच है .मै इंदौर का प्रशंसक नंबर एक हूँ, तो इंदौर से ईर्ष्या करने वालों में भी शुमार किया जा सकता हूँ ,लेकिन इंदौर के सिस्टम की कायरता ने इंदौर के बारे में मेरी धारणा बदल दी है .दो साल पहले एक विधायक के हाथों मार खाने वाले नगर निगम कर्मियों का अदालत के सामने साफ़-साफ़ झूठ बोलना मुझे परेशान कर गया .
इंदौर केवल सफाई के मामले में ही अग्रणीय नहीं है बल्कि विकास के मामले में भी अग्रणीय है .मै जब भी इंदौर आता हूँ यहां कुछ न कुछ नया होता देखता हूँ ,यहां मशीन और मजदूर हमेशा व्यस्त दिखाई देते हैं और ये बात मुझे अच्छी लगती है. विकास कार्यों की भरमार की वजह से इंदौर में केवल ईंट,गिट्टी.रेत ही नहीं बल्कि सभी कुछ दूसरे शहरों के मुकाबले 30 फीसदी से भी ज्यादा मंहगा है .इंदौर का विकास अनेक मामलों में चतुर्दिक है .इसमें असंतुलन कम है ,यहां महानगरों में होने वाली दुश्वारियों की भी कमी नहीं है बावजूद इसके इंदौर एक अव्वल शहर है .
हर साल साफ़ सफाई में अव्वल आने वाला इंदौर झूठ बोलने और कायरता का प्रदर्शन करने में भी अव्वल निकलेगा,ये मैंने कभी सोचा नहीं था. सत्तारूढ़ पार्टी के एक विधायक के आपराधिक कृत्य के खिलाफ अदालत में होस्टाइल होना दर्शाता है कि इंदौर में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है .यहां के चतुर्दिक विकास में बाहुबल भी एक बड़ा कारक है ,यदि ऐसा न होता तो दिन -दहाड़े मदाखलत अमले पर क्रिकेट का बल्ला चलने वाले विधायक को सजा जरूर मिलती ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ .जाहिर है कि फरयादी को इंदौर में रहना है तो बाहुबलियों की जय-जय भी कहना ही होगी,अन्यथा इंदौर में रहना आसान नहीं होगा .
मामला चूंकि इंदौर का है इसलिए जो हुआ उसके बारे में इंदौर के लोग मंथन करें किन्तु मै इस घटना को पूरे प्रदेश के सन्दर्भ में देखता हूँ और परेशान होता हूँ .सवाल ये है कि ऐसे विकास का क्या फायदा जिसमें आम आदमी डर-डर कर जीता हो ? निर्भयता विकास की पहली शर्त और जरूरत होती है .इंदौर में जैसे दूसरे क्षेत्रों में विकास हो रहा है वैसे ही जन प्रतिनिधियों के आतंक में भी इजाफा हो रहा है .ये खतरनाक है. आगे-पीछे यही आतंक जनता का ही नहीं बल्कि सिस्टम और सरकार का सिरदर्द बन जाएगा .
इंदौर खुशनसीब है कि उसके ऊपर हमेशा से सत्ता का वरदहस्त रहा है. प्रदेश के नेता किसी भी दल के हों इंदौर में निवेश करते हैं .मै अपने इलाके के ही बहुत से नेताओं और नौकरशाहों को जानता हूँ जिनका तमाम निवेश इंदौर में है.नेताओं और नौकरशाहों का निवेश खेती-बाड़ी की आमदनी से नहीं आता .कैसे आता है ये सब जानते हैं ,इसलिए इंदौर ने हर मामले में दूसरे शहरों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही पाया है .निवेश के अनुकूल वातावरण की वजह से यहां जर,जमीन और इसी से वास्ता रखने वाली दूसरी चीजों की कीमतें आसमान छू रहीं हैं .जैसे नेताओं के लिए इंदौर प्रदेश का स्वर्ग है वैसे ही नौकरशाही के लिए भी इंदौर स्वर्ग है. क्योंकि यहां सेवाएं देकर कोई भी मेवा हासिल कर सकता है और अपनी हैसियत से ज्यादा हासिल कर सकता है किन्तु ये सम्पन्नता ही इंदौर में रहने की कीमत आपको कायर बनाकर वसूल करती है .
बात एक विधायक के आपराधिक कृत्य के मामले में अदालत के सामने झूठ बोलने की थी लेकिन बात निकली तो दूर तक चली गयी .मै बीते पांच दशकों से इंदौर आता जाता रहता हूँ .यहां मेरा भी एक छोटा सा आशियाना है ,लेकिन मुझे यहां की भागमभाग और गलाकाट प्रतिस्पर्धा देखकर घबड़ाहट होती है ,इसलिए कभी-कभी लगता है कि मै इस शहर के लायक हूँ ही नहीं .इस शहर में मेरे जैसे तमाम लोग हैं जो एडजस्ट हो गए हैं. दूसरे शहरों के लेखकों और पत्रकारों के यहां के लेखक और पत्रकार ज्यादा समर्थ और सम्पन्न हैं .पिछले दिनों यहां के एक प्रमुख दैनिक के पत्रकार को एक करोड़ की रिश्वत देने के मामले में नौकरी से निकाला गया था .उससे पहले यहीं के एक नामचीन्ह सम्पादक को रहस्य्मय हालात में अपनी जान देना पड़ी थी .
इस तरह मै जिस शहर में रहता हूँ वो भी इंदौर की तरह ही अतीत का एक सामंती चरित्र वाला शहर है .वहां भी बाहुबली पनप रहे हैं ,लेकिन वहां कायरता का प्रतिशत इंदौर के मुकाबले काफी कम है जिस शहर में मै बीते पचास साल से रह रहा हूँ वहां अभी कम से कम लोगों को बोलनेकी आजादी तो है .मेरे शहर ग्वालियर का विकास हालांकि इंदौर की तरह नहीं हुआ है लेकिन जितना भी हुआ है ठीक ही है .हम अपने नसीब को कोसते हैं लेकिन कायरता का प्रदर्शन नहीं करते .हम यानि ग्वालियर भी इंदौर बनना चाहता है किन्तु दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पा रहा क्योंकि हमारे यहां से आजतक कोई मुख्यमंत्री नहीं बना .हमारे यहां निवेश का वातावरण नहीं है.हमारे नेता अपनी गर्भनाल का सम्मान नहीं करते और अपने शहर के बजाय इंदौर ,भोपाल पर जान छिड़कते हैं .
आम आदमी की मुश्किल ये है कि वो अपना नसीब खुद नहीं लिख सकता.ये कहता केवल और केवल नेताओं और नौकरशाहों के पास है .आम आदमी केवल तमाशबीन है .तमाशा देख सकता है.आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने वाले अखबार और टीवी चैनल भी अब आम आदमी के नहीं रहे .ऐसे में जो हो रहा है सो हो रहा है .हम केवल ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं. हम इंदौर के लिए भी प्रार्थना ही कर सकते हैं कि वो इस शहर को भय मुक्त बनाये और यहां की आवोहवा में आतंक का जहर न घुलने दे .मेरी बात मन की बात है यदि इंदौर को ये बुरी लगे तो मै क्षमायाचना पहले ही किये लेता हूँ .उन्हें मुझसे असहमत होने का हक है ,लेकिन वे यदि हकीकत के साथ भी खड़े हों तो और बेहतर है .
@ राकेश अचल