@विनोद भगत
देहरादून । प्रदेश सरकार ने बड़े जोर शोर से मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल की शुरुआत की थी। दावा था कि जनता का कोई भी व्यक्ति इसमें आन लाइन शिकायत दर्ज करा सकता है और उसकी शिकायत का तत्काल संज्ञान लेते हुए सबंधित विभागीय अधिकारी को कार्रवाई के लिए निर्देशित कर समाधान कराया जायेगा। आम जन इस समाधान पोर्टल को लेकर बड़ी उम्मीदें लगाये हुये था। कारण स्वयं मुख्यमंत्री का नाम इस पोर्टल से जुड़ा था। लेकिन कार्रवाई तो अंततः अधिकारियों को ही करनी थी। इसलिए मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल का जो उद्देश्य था वह पूरा नहीं हो पाया।
शिकायत की प्रक्रिया में 1905पर फोन लगाकर अपनी शिकायत दर्ज कराया जाना या फिर आनलाइन लिखित शिकायत दर्ज कराना था। इस पोर्टल की खास बात यह है कि जैसे ही आप शिकायत दर्ज कराते हैं आपके पास मैसेज आता है कि आपकी समस्या का निराकरण कर दिया गया है संबधित विभाग को आपकी शिकायत भेज दी गई है। यह अपने आप में हास्यास्पद है कि संबधित विभाग के अधिकारी को आपकी शिकायत सबंधी एप्लीकेशन भेज देना कैसे शिकायत का निराकरण हो जाना है। एप्लीकेशन किसी अधिकारी को कोई भी सामान्य व्यक्ति दे सकता है। यदि एप्लीकेशन देना ही समाधान है तो मुख्यमंत्री पोर्टल की क्या जरूरत है। वह तो पहले से प्रक्रिया है।
यह हाल तब है जब समय-समय पर मुख्यमन्त्री की ओर से समाधान पोर्टल समीक्षा भी की जाती है। कई विभाग तो ऐसे हैं जहां सैकड़ों की संख्या में शिकायतें स्वीकार ही नहीं की गई हैं। बाकायदा उनका ब्यौरा भी दर्ज है। बहरहाल देखना यह है कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है। उत्तराखंड सरकार ने आम लोगों की शिकायतों पर सुनवाई और मदद के लिए समाधान पोर्टल शुरू किया था लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते शिकायतें डम्प हैं और लोग समाधान का इंतजार कर रहे हैं।
मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की पहल पर शुरू किए गए समाधान पोर्टल पर शिकायतें तो खूब दर्ज हो रही हैं लेकिन अधिकारियों की दिलचस्पी न तो लोगों की समस्या का समाधान करने में है और न ही समाधान पोर्टल पर। प्रदेश के कई जिलों के अधिकारी ही नहीं निदेशालय और शासन स्तर पर लम्बित शिकायतों की फेहरिस्त बताती है कि कैसे आम लोगों की शिकायतों पर विभागीय अधिकारी कुंडली मारकर बैठे हैं। प्रदेश के तेरह जिलों में से छह ऐसे हैं जहां लम्बित शिकायतों का आंकड़ा सौ को पार कर चुका है।