त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें बेस्ट सीएम का अवार्ड घोषित किया गया है तो दूसरी तरफ यह भी अपने आप में सत्य है कि विपक्ष से ज्यादा उनकी अपनी ही पार्टी के तमाम समर्थक उन्हें राज्य का सबसे नाकामयाब मुख्यमंत्री मानते हैं।
दरअसल त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने कार्यकाल में अब तक ऐसे लोगों को ज्यादा महत्व दिया है जो उनकी प्रशंसा को ही जन सेवा माने बैठे हैं। राज्य की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर्जा लेने के बावजूद त्रिवेंद्र सरकार अपनी खुद की पीठ ठोकती नजर आती है। आयुष्मान योजना की सफलता के अभी ताजे दावे से त्रिवेंद्र सरकार की हकीकत सामने आ गई है। दावा तो किया पर यह भूल गए कि कि इस योजना घोटाले करने वाले चिकित्सकों का बाल बांका भी न कर पाये उल्टा घोटाले बाजों द्वारा रकम जमा करने के बाद उनके विरुद्ध दर्ज एफआईआर वापस लेने की कार्रवाई शुरू हो गई। अलबत्ता मामले की विवेचना जारी है। पहली बार किसी अपराध को लेकर राज्य में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
वहीं इस सरकार की एक उपलब्धि यह रही कि मीडिया के सच लिखने पर उन्हें गिरफ्तार करने में त्रिवेंद्र सरकार की त्वरित कार्रवाई जग जाहिर है। पर्वतजन के संपादक का उदाहरण सामने है। हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय से उनकी गिरफ्तारी को लेकर स्पष्टीकरण भी दिया गया। पर पूरे प्रदेश में इस गिरफ्तारी से सरकार का मीडिया विरोधी चेहरा सामने आ गया।
प्रदेश के कई भाजपा नेता त्रिवेंद्र सरकार के कार्यों को लेकर मौन हैं। कहा जा रहा है कि 2022 का होने वाला विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए जीत पाना संदेह के घेरे में हैं। पार्टी के भीतर पनप रहा असंतोष कभी भी बाहर आ सकता है। प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भी पार्टी में घमासान चल रहा है। नवंबर के महीने से लेकर अब तक पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद पर मंथन में ही जुटी हुई है। अब इस पद के लिए तमाम वरिष्ठ नेता दौड़ में हैं। देखा जाए तो प्रदेश अध्यक्ष के लिए सरकार हाईकमान को किसी सर्वमान्य नेता का नाम सुझा पाने में असमंजस की स्थिति में है।