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काशीपुर : 2027 की हार की तैयारियां शुरू,बाहरी कांग्रेसी नेता सक्रिय, भाजपा की राह अभी से कर रहे आसान?

@विनोद भगत

काशीपुर। कभी काशीपुर कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यहां से कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और जनता के दिलों में जगह बनाई। लेकिन अब यह कहना गलत नहीं होगा कि काशीपुर में कांग्रेस की जीत इतिहास के पन्नों में कहीं खो गई है। और सबसे चिंताजनक बात यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में यह हार केवल इतिहास तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि आने वाले चुनावों में भी वही परिदृश्य दोहराया जाता दिख रहा है।

असल में कांग्रेस की जड़ों को हिलाने का काम किसी बाहरी दल ने नहीं, बल्कि खुद कांग्रेस के अंदर बैठे तथाकथित वरिष्ठ और स्वयंभू नेता कर रहे हैं। जिनके व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और सत्ता की भूख संगठन की एकता और मजबूती पर भारी पड़ रही हैं। यही कारण है कि आज पार्टी के स्थानीय नेताओं को दरकिनार कर, अचानक कोई बाहरी चेहरा आगे कर दिया जाता है — जिसे स्थानीय जनता तक भलीभांति नहीं जानती। परिणामस्वरूप, स्थानीय स्तर पर संगठन की पकड़ लगातार कमजोर पड़ती जा रही है।

अक्सर यह कहा जाता है कि भाजपा ने काशीपुर में कांग्रेस को करारी मात दी। लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस की हार भाजपा की ताकत से अधिक कांग्रेस की अपनी फूट का परिणाम थी। पार्टी के भीतर कुछ ऐसे लोग सक्रिय हैं जो नेताओं के रूप में नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के लिए “राजनीतिक एजेंट” की भूमिका निभा रहे हैं। यही तत्व कांग्रेस की एकजुटता को तोड़ने और जनता में भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं।

अब जब 2027 के विधानसभा चुनाव में लगभग डेढ़ वर्ष का समय शेष है, ऐसे ही एक “महत्वाकांक्षी” नेता की सक्रियता फिर से चर्चा में है। काशीपुर की राजनीति में हलचल तेज है, और पार्टी के भीतर कई पुराने कार्यकर्ता खुलकर सवाल उठा रहे हैं — आखिर प्रदेश स्तर के बड़े नेता इस सब पर चुप क्यों हैं? क्या वे स्थिति से अनजान हैं, या जानबूझकर मौन साधे हुए हैं? आपको याद दिला दें कि कुछ वर्ष पहले भी कांग्रेस के इस नेता ने यहाँ की कांग्रेसी राजनीति में घुसपैठ की असफल कोशिश की थी और अब फिर वही कोशिश शुरू होती दिख रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की 2027 की हार की पटकथा 2025 के अंत से ही लिखी जाने लगी है। यदि पार्टी ने समय रहते आत्ममंथन नहीं किया, तो आने वाले चुनावों में न सिर्फ काशीपुर बल्कि पूरे ऊधमसिंहनगर जनपद में कांग्रेस का आधार और कमजोर होता चला जाएगा।

काशीपुर की कांग्रेस के लिए यह समय आत्ममंथन का है। क्योंकि जनता अब सब कुछ देख रही है — कौन संगठन को मजबूत कर रहा है और कौन अंदर से कमजोर। यदि पार्टी ने अपने भीतर के मतभेदों को समय रहते नहीं सुलझाया, तो कांग्रेस की “वापसी” का सपना आने वाले वर्षों में भी केवल इतिहास की किताबों तक सीमित रह जाएगा।

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