@शब्द दूत ब्यूरो (,05 अगस्त 2024)
काशीपुर । 30 से 40 हजार पर्वतीय आबादी का शहर काशीपुर। लेकिन पर्वतीय समाज की सबसे बड़ी संस्था देवभूमि पर्वतीय महासभा के बारे में ये तथ्य जानकर आप हैरान रह जायेंगे।
बात शुरू करते हैं बीते रोज कूर्मांचल कालोनी में आयोजित महासभा की सभा से। यह सभा प्रशासन द्वारा महासभा के चुनावों की रूपरेखा तय करने के लिए बुलाई गई थी। चुनाव अधिकारी नायब तहसीलदार भीम सिंह कुटियाल इसमें प्रशासन की ओर से मौजूद थे। उनके पास 766 वोटरों की एक सूची थी। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि 30 हजार से अधिक पर्वतीय जनसंख्या में वोटर मात्र 766 ही हैं। और ये भी ध्यान देने वाली बात है कि देवभूमि पर्वतीय महासभा के वरिष्ठ नेता विभिन राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं। और मजे की बात यह है कि अपने अपने दलों के लिए चुनाव के मौके पर वोटर बढाने के लिए जी जान लगा देते हैं। और वहीं जब खुद के समाज की बात आती है तो निर्विरोध चुनाव की वकालत करते हैं। अब आप समझिये इन वरिष्ठ नेताओं की नीति। नीति ये है कि सदस्य संख्या बढाने पर कोई जोर नहीं देता। सदस्य अधिक होंगे तो चुनाव मतदान से होगा और मतदान में शहर के तीस हजार से अधिक पर्वतीयों की बड़ी संख्या वोट करेगी। चुनाव जरा कठिन हो जायेगा। इसलिए मतभेद की बात कहकर निर्विरोध चयन पर जोर दिया जाता है।
देवभूमि पर्वतीय महासभा की तमाम बैठकें आयोजित की जाती रहीं हैं लेकिन सबसे शर्मनाक बात यह है कि इन बैठकों में आज तक महिला शक्ति की उपस्थिति लगभग नगण्य रही है। इसका सीधा सा मतलब है कि देवभूमि पर्वतीय महासभा में मातृ शक्ति के लिए कोई जगह नहीं है। यह अपने आप में आश्चर्य के साथ साथ उस नारे का भी अपमान है जिसमें कहा जाता है कि मातृ शक्ति के बगैर किसी भी राष्ट्र की उन्नति की कल्पना बेकार है। यहाँ राष्ट्र शक्ति के नाम पर सिर्फ नारेबाजी तक सीमित है।
अब बात करते हैं बैठक में उपस्थित सदस्यों की तो लगभग 106 लोग बैठक में उपस्थित हुए। उसमें से भी कुछ लोग अपनी उपस्थिति दर्ज करा कराकर चले गए। यहाँ तक कि एक वक्ता को कहना पड़ कि जब पर्वतीय लोग ही ऐसी महत्वपूर्ण बैठक को समय नहीं दे पायेंगे तो इस महासभा को विघटित कर देना चाहिए।
बैठक के दौरान चुनाव अधिकारी के समक्ष एक दूसरे पर, पूर्व पदाधिकारियों को आरोप प्रत्यारोप के बीच जमकर हंगामा चलता रहा।
वहीं इस बीच मीडिया से कुछ लोग इस बैठक की पाजिटिव खबर दिखाने की अपील करते रहे। भारी हंगामे और शोर शराबे की पाजिटिव खबर आखिर कैसे बने? अगर पाजिटिव होती तो कल की बैठक की नौबत ही नहीं आती। बहरहाल पर्वतीय एकता के नाम पर बनी महासभा के सदस्य आपस में ही एक नहीं हो पा रहे। ये अलग बात है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम पर उनकी एकता का कोई सानी नहीं है।
सोचना होगा कि कमी कहाँ हैं और कैसे दूर होगी न कि आपस में उलझ कर महासभा के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगाना?