@शब्द दूत ब्यूरो (08 अक्टूबर 2022)
देहरादून। ब्यूरोक्रेसी पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कार्यकाल के दौरान जिस तरह से समन्वय स्थापित कर शासन चलाया है वह इस राज्य के लिए शुभ संकेत है। सीएम की कार्यकुशलता के चलते इस समय राज्य में ब्यूरोक्रेसी और सरकार के बीच तालमेल स्थानीय जनता के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है। जब युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को राज्य की बागडोर सौंपी गई थी तो कहा जा रहा था कि अनुभव की कमी उनके सामने कुछ दिक्कतें पैदा कर सकती है। लेकिन पुष्कर धामी ने इसके विपरीत खुद को एक मंझे हुये राजनेता और प्रदेश के सफल मुखिया के रूप में बड़े ही कम समय में स्थापित कर लिया है।
पुष्कर सिंह धामी ने राज्य के लिए समर्पित अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर अपनी इस यात्रा को जारी रखा है। हालांकि बीच में कुछ अपवाद जरूर आये उसके बावजूद धामी की कार्यकुशलता पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
अगर देखा जाए तो किसी भी प्रदेश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए सरकार और अफसरशाही के बीच समन्वय होना एक बुनियादी आवश्यकता है। भ्रष्टाचारी अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने में पुष्कर सिंह धामी जरा भी नहीं हिचकते। ऐसे कई मौके आये जब कतिपय अधिकारियों की वजह से सरकार पर सवाल उठे लेकिन धामी ने समय रहते उन सवालों को अपने अनुशासन और त्वरित निर्णय से निरूत्तर कर दिया। परिणामस्वरूप आज भी पुष्कर धामी उत्तराखंड के चहेते मुखिया बने हुए हैं। राजनीति से हटकर अगर बात की जाये तो नारायण दत्त तिवारी के बाद पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के सबसे सफल मुख्यमंत्री माने जाने लगे हैं।
भाजपा हाईकमान भी युवा पुष्कर सिंह धामी के जीवट और कार्यकुशलता से प्रभावित है। हार के बावजूद उन्हें पुन: राज्य की बागडोर सौंपा जाना इसका प्रमाण है। आमतौर पर उत्तराखंड में अफसरशाही के हावी होने की बात कही जाती है लेकिन पुष्कर सिंह धामी ने उसे भी गलत साबित कर दिया है। पुष्कर धामी के बारे में यह कथन सटीक बैठता है “कि हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं।
पुष्कर धामी ने उत्तराखण्ड के उस मिथक को भी तोड़ा कि हर पांच साल में यहाँ सरकार बदलती है। यहाँ न तो सरकार बदली और न मुख्यमंत्री। यह ही पुष्कर धामी का चमत्कार है।
कुल मिलाकर यह कहा जाए कि राजनीति के समर में एक अजेय योद्धा की तरह पुष्कर धामी राज्य की बागडोर मजबूती के साथ और सफल मुख्यमंत्री के तौर पर पर कायम है।