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महाशिवरात्रि पर विशेष :भगवान शिव को भांग गांजा धतूरा आदि नशीला पदार्थ चढ़ाना है पाप

आचार्य धीरज याज्ञिक

भगवान शिव को भांग,गांजा आदि नशीले पदार्थ चढ़ाने व खाने की बात कर सनातन धर्म एवं महादेव का उपहास करने वाले हो जायें सावधान। भगवान शिव का नाम लेकर गांजा , भांग , चरस आदि फूंकने वाले ध्यान दें ! भूतभावन भगवान भोलेनाथ नशे के किसी भी पदार्थ का सेवन करते हों , ऐसा हमको आज तक किसी भी शास्त्र में नहीं दिखा ।

विजया शब्द का अर्थ भांग भी होने से भांग पीनेवाले लोग वेद में आये विजया शब्द का अर्थ भांग करते हैं , जबकि भगवान शिव के धनुष का नाम विजया है और सभी आचार्यों ने भी अपने भाष्य में धनुष ही अर्थ किये हैं ।मूलमंत्र में भी विजया के बाद धनुष का उल्लेख होता है—
“विज्यं धनु: कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ उत।”

शिवपुराण , लिंगपुराण , स्कंदपुराण , पद्मपुराण आदि में भगवान शंकर के चरित्र आये हैं किन्तु उसमें भांग , गांजा , धतूरा आदि नशीली वस्तु खाने या पीने का वर्णन कहीं भी नहीं है ।
यहां तक कि भगवान् आद्यशंकराचार्य रचित —
शिवमानस-पूजा-स्तोत्र में भी भगवान शिव को चढ़ने वाले सभी पदार्थों की कल्पना कि गई है परन्तु उसमें गांजा , भांग आदि का नाम कहीं भी नहीं आया है।
देवाधिदेव महादेव तो जगत के रक्षार्थ हलाहल विष का पान किया था न कि नशीला पदार्थ।
इसीलिये अपने दुर्व्यसन को भगवान शिव पर आरोपित करने का पाप न करें , क्योंकि आपका सर्वनाश करने के लिये तो आपका दुर्व्यसन ही पर्याप्त है तो व्यर्थ में प्रलयंकर भगवान हर का अपराधी क्यों बनना !
जबकि हमारे धर्मशास्त्रों में तो कहा गया है —
*”विजया कल्पमेकं च दश कल्पं च नागिनी।*
*मदिरा कल्पसहस्राणि धूमसंख्या न विद्यते ।।”*
अर्थात् – भांग खाने वाला एक कल्प ,संखिया खाने वाला दश कल्प , शराब पीने वाला हजारों कल्प तथा धूम्रपान करने वाला पता नहीं कितने कल्पों तक नरक गामी होता है इसकी संख्या नहीं है ।

मैं निवेदन करना चाहता हूं कथा करने वाले व्यास,कर्मकाण्ड करने वाले ब्राह्मण,तथा मठ मंदिर के पुजारी,संत महात्माओं से कि इस विषय में प्रकाश डालते हुए इस बात को आम जनमानस को समझायें कि यह विसंगति भारत वर्ष जब गुलाम हुआ तब आई।

यह केवल और केवल सनातन धर्म का उपहास और देवों के देव महादेव को हास्य का पात्र बनाने के लिए हम पर थोपा गया।
अतः आप समस्त भक्तों से करबद्ध निवेदन है कि अपने सनातन धर्म का उपहास न करें एवं देवाधिदेव भगवान शिव जी को हास्य का पात्र न बनायें।

आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)

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