@विनोद भगत
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत क्या भाजपा के ही थे? यह सवाल बचकाना लग सकता है। लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद एक के बाद एक जिस तरह से उनके फैसलों को लगातार पलटा जा रहा है। उससे एकबारगी यह अहसास होता है कि सूबे में नेतृत्व परिवर्तन ही नहीं पार्टी भी बदल गई है। अब या तो त्रिवेन्द्र भाजपा में नहीं थे या फिर अब भाजपा की सरकार नहीं है। ये बातें हास्यास्पद प्रतीत हो रही है। लेकिन धड़ाधड़ त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार के कार्यकाल में जो कुछ भी हुआ वह अब नहीं होगा यहाँ तक कि उसके निशान भी मिटाये जा रहे हैं।
उत्तराखंड की राजनीति में यह आने वाले तूफान का संकेत है। हालांकि अपनी पीड़ा को प्रतीकों के माध्यम से त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने व्यक्त जरूर किया है। पर उत्तराखंड में उनके समर्थकों में अब बेचैनी दिखने लगी है। आज दायित्वधारियों को पैदल करने के बाद तो लगता है कि उत्तराखंड में भाजपा त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल को भुलाने जा रही है। ये वही त्रिवेन्द्र सिंह रावत हैं जिनकी पीठ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ठोक चुके हैं। और अब वही त्रिवेन्द्र सिंह रावत पार्टी में हाशिये पर डाले जा रहे हैं। प्रकट में भले ही कहा जा रहा हो कि भाजपा में कोई वीआईपी नहीं होता सब कार्यकर्ता होते हैं। पर अपने ही कार्यकर्ता को लगातार गलत फैसला लेने वाला साबित करना क्या दर्शा रहा है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत से हाईकमान नाराज हैं या फिर अपनों के ही चक्रव्यूह में अभिमन्यु की मानिंद त्रिवेन्द्र सिंह रावत की राजनीति पर पलटते फैसलों के बाण मारे जा रहे हैं।