उत्तराखंड के दसवें मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत आज शाम शपथ लेंगे। उन्हें देहरादून में विधिवत विधानमंडल का नेता चुन लिया गया है।
तीरथ सिंह रावत 20 साल के उत्तराखंड में दसवें मुख्यमंत्री हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद वह उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री हैं। वे अभी तक पौड़ी गढ़वाल से सांसद हैं और संगठन में रहकर पार्टी का कामकाज देखते रहे हैं। हालांकि तीरथ सिंह रावत उत्तर प्रदेश में एमएलसी और राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे है।
तीरथ सिंह रावत की छवि एक लो प्रोफाइल नेता की रही है। उनकी भी त्रिवेन्द्र सिंह रावत की तरह जनता के बीच खास छवि नहीं है। लेकिन वे संगठन के विशेषज्ञ माने जाते हैं। जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था तो वह राज्य के पहले एजुकेशन मिनिस्टर बने थे। 2012 में वह एमएलए बने थे और 2013 में वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने।
तीरथ सिंह रावत 2012 से 2017 तक उत्तराखंड में विधायक रहे हैं। 2013 में वह जब प्रदेश अध्यक्ष थे तो नॉन परफॉर्मेंस के चलते उन्हें तीन साल के कार्यकाल से पहले ही हटा कर अजय भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और उन्हें विधानसभा का टिकट भी नहीं दिया गया। बाद में इन्हें सांसद का टिकट पौढ़ी से दिया गया और ये चुनाव जीते।
तीरथ सिंह रावत पर 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सरकार को वापस लाने की जिम्मेदारी है, जिसके लिए उनके सामने निवर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की गलतियों को सुधारने की चुनौती भी है।
सीएम पद के लिए नाम घोषित होने के बाद तीरथ सिंह रावत ने कहा कि मैं संघ प्रचारक रहा। मैं प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का दिल से धन्यवाद करता हूं। मैनें कभी सोचा नहीं था और कल्पना भी नहीं की थी कि मैं कभी मुख्यमंत्री बनूंगा। आज तक जो मुझे ज़िम्मा मिला वो मैंने निभाया। आगे भी निभाने की कोशिश करूंगा। हम टीम भावना के साथ आगे बढ़ेंगे। उन्होंने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की भी तारीफ की और कहा कि उन्होंने जो काम किये वो कभी न हुए थे।
तीरथ सिंह रावत का जन्म 9 अप्रैल 1964 को पौड़ी गढ़वाल के गांव सीरों, पट्टी असवालस्यूं में हुआ। उन्होंने हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यायल से बैचलर ऑफ आर्ट्स का स्नातक कोर्स किया.इसके बाद उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल के बिरला कॉलेज से समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएट और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया। इसके बाद वह आरएसएस के साथ बतौर कार्यकर्ता जुड़ गए। उन्होंने 1983 में संघ के प्रचारक के रूप में शुरुआत की थी।