उत्तराखंड की सियासत में मची उथल-पुथल के बीच मुख्यमंत्री आवास एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है। लगभग 30 करोड़ रुपये की लागत से बने इस सरकारी आवास में अब तक जितने भी मुख्यमंत्री रहे, वे अपना कार्यकाल पूरा ही नहीं कर पाए। अब त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम इस फेहरिस्त में चौथे स्थान पर है। मुख्यमंत्री के इस्तीफा देते ही इस बंगले का मिथक सत्ता के गलियारों में फिर चर्चा का विषय बन गया। एक बार फिर इस आवास के वास्तुदोष की चर्चा चल पड़ी है।
मुख्यमंत्री आवास में वास्तुदोष की अफवाहों के कारण करीब सभी पूर्व मुख्यमंत्री इसमें रहने से कतराते रहे हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के यहां आने से पूर्व राज्य संपत्ति विभाग ने बंगले को संवारने का काम भी किया था। इस मुख्यमंत्री आवास का निर्माण नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में शुरू हुआ था, जो भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडू़डी के पहले कार्यकाल में पूरा हुआ। खंडू़ड़ी ही सर्वप्रथम इस आवास में रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था।
डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी मुख्यमंत्री के रूप में इस आवास में ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रह पाए। भुवन चंद्र खंडू़ड़ी जब सितंबर 2011 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, तो करीब छह माह आवास में रहने के बाद पार्टी चुनाव हार गई।
खुद खंडू़ड़ी सीएम होने के बावजूद कोटद्वार से चुनाव हार गए। इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और इसके मुखिया बने विजय बहुगुणा। उनको भी यही मुख्यमंत्री आवास मिला और वह भी करीब एक साल और 11 माह तक ही पद पर रह पाए।
हरीश रावत भी अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए इस मुख्यमंत्री आवास में शिफ्ट नहीं हुए, मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपना पूरा कार्यकाल बीजापुर गेस्ट हाउस में ही बिताया। वह कभी भी इस सरकारी आवास में नहीं गए। हालांकि, वह भी 2017 में अपनी किस्मत के सितारे नहीं बदल पाए।
वहीं, फरवरी 2014 से मार्च 2017 तक मुख्यमंत्री आवास खाली रहा। इस दौरान हरीश रावत को यहां आना था लेकिन वे यहां रहने ही नहीं आए। इसके बाद सभी मिथकों को पीछे छोड़ त्रिवेंद्र सिंह रावत मार्च 2017 में इस आवास में रहने आए थे। लेकिन संयोग ही रहा कि वे भी पांच साल का कार्यकाल पूरा न कर सके।