@शब्द दूत ब्यूरो
काशीपुर । सुबह का वक्त आयुषी स्कूल जाते हुये जब रास्ते पर पड़ने वाली पटरियों से होकर गुजरती तो रोज मैले कुचैले कपड़ों में कुछ बच्चों को नन्हे हाथों से कोयले का चूरा बीनते देखती थी। आयुषी खुद को देखती और फिर उन बच्चों को। आयुषी फर्क समझने की कोशिश करती उन बच्चों और खुद के बीच में। आखिर क्यों वह बच्चे भी उसकी तरह स्कूल क्यों नहीं जा सकते? इन कौंधते सवालों का जबाब ढूंढने की कोशिश में आयुषी को एक ऐसी राह सूझ गई कि उन मासूम बच्चों का बचपन पटरियों के बजाय स्कूल और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चला।
आयुषी नागर की सोच आज के युवाओं के लिए प्रेरक है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मिलिये काशीपुर की इस बालिका से जिसके हौसले ने शिक्षा से वंचित बच्चों को अपने ख्वाहिश एन जी ओ के माध्यम से समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम पिछले तीन साल से चला रखी है जो अनवरत जारी है।
आयुषी ने 2017 में ख्वाहिश नाम से एक एन जी ओ बनाया। अपने मित्रों और शहर के लोगों का भी आयुषी को सहयोग और प्रोत्साहन मिला तो आयुषी की राह आसान हो गई। आयुषी के माता-पिता ने भी उसे प्रेरित किया।
आयुषी की ख्वाहिश’ टीम में शामिल युवा और बच्चे शामिल हैं। ख्वाहिश ने इनको पढ़ाई के साथ-साथ से जोड़ते हुए आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोजगारपरक शिक्षा भी दी है। मसलन सिलाई और पुराने कपड़ों से बैग तैयार करना जैसे काम से तैयार उत्पाद बनाकर बेचने से इन बच्चों की आमदनी भी हो जाती है।