@विनोद भगत
काशीपुर । राजनीतिक रसूखदारों ने उत्तराखंड की बीज एवं तराई विकास निगम को बदहाली के कगार पर पर पहुंचा दिया। निगम का मुख्यालय पंतनगर के हल्दी में है। लेकिन किसानों को उच्च कोटि का बीज उपलब्ध कराने वाले इस उपक्रम का काशीपुर कार्यालय इस बदहाल संस्था की बर्बादी की दास्तान खुद सुना रहा है।
शब्द दूत की टीम ने काशीपुर के रामनगर रोड पर स्थित तराई बीज विकास निगम के कार्यालय में जाकर जो कुछ देखा उससे पता चलता है कि किसानों के हित की बात करने के सरकारी दावों की धरातल पर क्या हकीकत है? काशीपुर कार्यालय का प्रवेश द्वार ही तराई बीज विकास निगम अंदरूनी हालत बयान करता नजर आ रहा है। हैरत की बात यह है कि लगभग दो वर्ष पूर्व इस कार्यालय का साइन बोर्ड क्षतिग्रस्त हो गया था लेकिन उसके बाद से इसे सही कराने की जहमत इसके अधिकारियों द्वारा नहीं की गई। एक अधिकारी ने बताया कि कार्यालय का आगे का हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्ग के दायरे में आने की वजह से चारदीवारी और गेट तोड़े गये थे। जो तीन वर्षों से उसी अवस्था में जमीन पर पड़े हुये हैं।
इस कार्यालय के भीतर यदि आप जायेंगे तो यह कोई कार्यालय कम भुतहा हवेली ज्यादा नजर आता है। प्रवेश द्वार पर टूटा साइन बोर्ड अंदर टूटे दरवाजे फर्नीचर की हालत भी कबाड़ जैसी बनी हुई है। दरवाजों पर लगे जाले बता रहे हैं कि तराई बीज विकास निगम का यह कार्यालय निष्प्रयोज्य स्थिति में है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि कार्यालय में काम होता है। भुतहा इमारत बन चुकी इस इमारत में दिन में भी आने में आपको डर लग सकता है।
बताते हैं कि एक समय था इस कार्यालय में बीस पच्चीस लोगों का स्टाफ होता था। आज यहाँ मात्र तीन लोगों का स्टाफ है। एक इंचार्ज और दो चौकीदार। इंचार्ज भी सप्ताह में एक दिन आ पाते हैं। दरअसल उनके पास तीन जगह का चार्ज है। इसलिए वह नियमित नहीं आ पाते हैं।
इंचार्ज मोहित शर्मा से फोन पर बात हुई तो उन्होंने बताया कि कार्यालय की मरम्मत के लिए उच्च अधिकारियों को पहले के इंचार्ज द्वारा लिखित में दिया गया है। उन्होंने बताया कि बीच में इस कार्यालय को बीज प्रमाणीकरण संस्था को बेचने पर विचार चल रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि कार्यालय की मेंटेनेंस की जरूरत तो है।
इस बीच कार्यालय पहुंचे किसान नेता टीका सिंह सैनी ने बताया कि आज तीन साल पहले आठ नौ सौ हेक्टेयर में किसान यहाँ से प्रमाणित बीज ले जाकर बोया करते थे। लेकिन आज यहाँ से केवल कुछ सरकारी एजेंसी ही बीज लेती है। किसानों ने यहाँ से बीज लेना लगभग बंद कर दिया है।
आपको बता दें कि देश भर में उच्च स्तर के बीजों के लिए एक समय इस तराई बीज विकास निगम का बड़ा नाम था। पर इसकी यह हालत कैसे यहाँ तक पहुंची यह अपने आप में लंबी दास्तान है। बेचे गये बीज का भुगतान न मिलना, समय-समय पर करोड़ों रुपये के बीज घोटाले निगम के ही अधिकारियों द्वारा निगम को चूना लगाने जैसे मामलों से इसकी साख गिरी है।
इस सबके बावजूद सरकार भले ही किसानों के हित की बात करते हुए उनकी आमदनी दुगुनी करने के दावे करती है लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत दयनीय है। बिहार के एक डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा भुगतान न मिलना और समय समय इसके उच्च पदों पर आसीन रहे राजनीतिक रसूखदार नेताओं ने भी इसकी बदहाली में अपना योगदान दिया है। बिडम्बना यह है कि रसूखदार राजनेता पार्टी बदलकर अपनी करनी पर पर्दा डाल चुके हैं।
सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की दोनों ही स्थितियों में इस निगम में जमकर भ्रष्टाचार का परिणाम यह हुआ कि आज तराई बीज विकास निगम के काशीपुर कार्यालय सरीखी हालत इसकी पूरी वास्तविकता को सामने ला रही है। किसान आमदनी दुगुनी करने के हर सरकार के दावों और वादों के सच होने की सिर्फ उम्मीद ही कर रहा है।