@विनोद भगत
काशीपुर । पिछले ढाई दशक से काशीपुर विधानसभा की कहानी में कोई बदलाव नहीं हो पाया है। हर बार वहीं पटकथा लिखी जा रही है। पूरी कहानी एक ही पात्र के इर्द-गिर्द घूमती आई है। हां कुछ पात्र बदले और हर चुनाव में इस विधानसभा की कहानी का नायक बनने की कोशिश की लेकिन नायक के अलावा अन्य पात्रों की भूमिका कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई फलस्वरूप एक ही पात्र हिट होता रहा।
लेकिन इस बार कहानी में ट्विस्ट आता दिख रहा है। लगता है कि अब जो पटकथा लिखी जा रही है उसमें एक नया चेहरा नायक की भूमिका में पसंद किया जा रहा है। जबकि अभी तक सहायक की भूमिका से मुख्य भूमिका निभाने की कोशिश करने वालों की कहानी में कोई बदलाव होता नजर नहीं आ रहा। उनकी कहानी वही घिसे पिटे ढर्रे पर लिखी जा रही है। कारण कि हर कोई खुद को नायक समझ रहा है। और शायद यही कारण है कि भूमिका के साथ न्याय नहीं हो पाता। हर बार की तरह पांच साल के भीतर काशीपुर विधानसभा की राजनैतिक फिल्म रिलीज तो होती है पर नायक वही पुराना चलता है।
वैसे एक ही नायक से शहर की जनता बोर होने लगी। एक से डायलॉग और वहीं संवाद अदायगी से आजिज आ चुके लोग एक नये नायक की तलाश में हैं। आपको याद होगा कि नायक फिल्म की जिसमें एक दिन का मुख्यमंत्री बनकर अनिल कपूर ने जोरदार भूमिका निभाई थी।
काशीपुर विधानसभा में क्या नायक फिल्म की तरह कोई उभरेगा? आखिर कौन होगा वह चेहरा? जो बदलेगा पिछले बीस वर्षों से लिखी जा रही पटकथा का नायक? पर एक बात तय है कि सहायक पात्रों की भूमिका में कोई बदलाव आता नजर नहीं आ रहा। व। वह हास्य कलाकार बन जाते हैं। कारण कि हर सहायक पात्र खुद को मंझा हुआ अभिनेता मान रहा जिस वजह से वह अपनी भूमिका से न्याय नहीं कर पाता।