@शब्द दूत ब्यूरो
देहरादून। उत्तराखंड में 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस और भाजपा कुछ-कुछ चुनावी मोड में नज़र आने लगी है। जहां एक ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत पूरे उत्तराखंड में कार्यकर्ताओं की मीटिंग ले रहे हैं वहीं कांग्रेस अपने प्रभारी देवेंद्र यादव की जी-हजूरी और खेमेबाजी में उलझी हुई नजर आ रही है।
उत्तराखंड कांग्रेस का प्रीतम सिंह खेमा इन दिनों कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ कैंपेन चलाए हुए है। इस कैंपेन में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और कभी हरीश रावत के खासमखास माने जाने वाले रणजीत रावत भी शामिल बताए जाते हैं।
2022 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर प्रीतम खेमा इंदिरा हृदयेश को आगे करना चाहता है। इस कैंपेन में कभी हरीश रावत के खासमखास रहे रणजीत रावत भी शामिल बताए जाते हैं। दरअसल, कांग्रेस के उपाध्यक्ष रणजीत रावत अपने बेटे विक्रम रावत को उत्तराखंड की राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। यही वजह है कि न चाहते हुए हुए भी रणजीत को प्रीतम खेमे की जी-हजूरी करनी पड़ रही है।
उधर, कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव ने भी एक बयान देकर कांग्रेसी की मौजूदा राजनीति में भूचाल ला दिया है। देवेंद्र यादव ने कहा कि हरीश रावत के मार्गदर्शन में इंदिरा हृदयेश और प्रीतम सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़े। कांग्रेस के नए-नवेले प्रभारी देवेंद्र यादव के इस बयान से साफ है कि प्रीतम खेमा उनके कंधे पर बंदूक रख हरीश रावत का हश्र लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसा देखने का मंसूबा पाले हुए हैै।
दरअसल, हरीश रावत के विरोधी उनके पिछले दो चुनाव एक साथ हारने को मुद्दा बनाए हुए हैं। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश भी गाहे-बगाहे कांग्रेस को वर्तमान स्थिति में पहुंचाने का दोष हरीश रावत के सिर मढ़ती रही हैं। इधर, हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर बाकायदा बयान जारी कर प्रीतम खेमे को करारा संदेश भी दिया है। हरीश रावत ने कहा है कि की कांग्रेस आलाकमान उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दे, जिसके बाद सभी कांग्रेसी एकजुट होकर चुनाव की तैयारियों में जुट जाएंगे।
इधर, कांग्रेस के तटस्थ वरिष्ठ नेताओं का ये भी मानना कि प्रीतम सिंह खेमे को हरीश रावत जैसे सर्वमान्य नेता को इतने हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इन नेताओं और स्वयं हरीश रावत का मानना है कि चुनाव हारने से कोई नेता कालातीत नहीं हो जाता।