@शब्द दूत ब्यूरो
बड़े जोर शोर से एंट्री हुई थी हरियाणा से आये उत्तराखंड मूल के सुरेश भट्ट की। पीएम मोदी की टीम के खास सदस्य माने जाते हैं सुरेश भट्ट। तब कयास लगाए जा रहे थे कि सुरेश भट्ट के आने के बाद उत्तराखंड भाजपा संगठन में भारी बदलाव देखने को मिलेगा। लेकिन जितना शोर सुरेश भट्ट के उत्तराखण्ड में आने का था उससे कहीं ज्यादा शांति हो गई।
एक समय में सुरेश भट्ट को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता रहा है लेकिन त्रिवेन्द्र सिंह रावत का पलड़ा भारी रहा। हालांकि बाद में उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष पद पर भी उनकी चर्चा चली थी। लेकिन काफी देर बाद सुरेश भट्ट आये भी और प्रदेश भाजपा संगठन में उनके लिए महामंत्री पद रिक्त रखा गया। उत्तराखंड में आते ही उनकी ताजपोशी संगठन में कर भी दी गई।
दरअसल हरियाणा में सुरेश भट्ट की पार्टी के लिए उपलब्धियों को देखते हुए उनका उत्तराखंड में आने का मतलब यहाँ 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को बेहतर प्रदर्शन करने के निमित्त बताया गया। लेकिन इधर सुरेश भट्ट को लेकर सरकार और संगठन की उदासीनता जग जाहिर हो गयी है। स्वयं सुरेश भट्ट भी इस बात को महसूस कर रहे हैं। पिछले माह काशीपुर और रूद्रपुर में संक्षिप्त कार्यक्रम के जरिये उन्होंने कार्यकर्ताओं की नब्ज भी टटोली थी। पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने खुद को प्रदेश अध्यक्ष के समानांतर काम करने की बात को नकार दिया साथ ही उन्होंने कहा कि वह कभी भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं रहे। यहाँ तक कि अपने दौरे को उन्होंने पूरी तरह से अनौपचारिक बताया। सुरेश भट्ट का यह बयान अपने आप में काफी है कि वह महामंत्री जरूर है पर उनकी अपनी सीमायें है।
इसके उलट हरियाणा में सुरेश भट्ट को पार्टी हाईकमान द्वारा काफी स्वतंत्रता दी गई थी। कहा तो यहाँ तक जाता है कि उनकी स्वतंत्रता की वजह से मुख्यमंत्री खट्टर ने बाकायदा ससम्मान उनकी हरियाणा से विदाई करायी। इधर उत्तराखंड में पहले से जमे भाजपाई दिग्गजों के सामने सुरेश भट्ट कितना कामयाब हो पायेंगे? और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के चुनाव क्षेत्र के निवासी सुरेश भट्ट की उत्तराखंड में भूमिका कैसी रहेगी इसका सभी को इंतजार है।