नई दिल्ली। पंजाब और हरियाणा के किसान तीनों किसान बिल का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इनमें किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल-2020 और मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल, 2020 शामिल है। लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार ये अध्यादेश लेकर आई थी लेकिन अब उसे कानून की शक्ल देने के लिए संसद में बिल पेश किया गया है। इनमें दो लोकसभा में पारित हो चुके हैं। पंजाब, हरियाणा के अलावा तेलंगाना, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में भी किसान इसका विरोध कर रहे हैं।
किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर कोई कर लगाने से रोक लगाता है और किसानों को इस बात की आजादी देता है कि वो अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचें। सरकार का तर्क है कि इस बिल से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल -2020 करीब 65 साल पुराने वस्तु अधिनियम कानून में संशोधन के लिए लाया गया है। इस बिल में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि कोआवश्यक वस्तु की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान है। सरकार का तर्क है कि इससे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को व्यापार करने में आसानी होगी और सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी। सरकार का ये भी दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा।
इन बिल (विधेयकों) पर किसानों की सबसे बड़ी चिंता न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर है। किसानों को डर सता रहा है कि सरकार बिल की आड़ में उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य वापस लेना चाहती है। दूसरी तरफ कमीशन एजेंटों को डर सता रहा है कि नए कानून से उनकी कमीशन से होने वाली आय बंद हो जाएगी। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 12 लाख से ज्यादा किसान परिवार हैं और 28,000 से ज्यादा कमीशन एजेंट रजिस्टर्ड हैं।
केंद्र सरकार के तहत आने वाले भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पंजाब-हरियाणा में अधिकतम चावल और गेहूं की खरीदारी करता है। 2019-20 में रबी खरीद सीजन में पंजाब में 129.1 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी। जबकि कुल केंद्रीय खरीद 341.3 लाख मीट्रिक टन हुई थी। साफ है कि कृषि से पंजाब की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर जुड़ी है। किसानों को डर सता रहा है कि नए कानून से केंद्रीय खरीद एजेंसी यानी एफसीआई उनका उपज नहीं खरीद सकेगी और उन्हें अपनी उपज बेचने में परेशानी होगी और एमएसपी से भी हाथ धोना पड़ेगा।