@विनोद भगत
उत्तराखंड में सत्तारूढ़ दल ने शोर बहुत मचाया। खुद की सरकार की सफलता की कहानियाँ जमकर गढ़ीं। यहाँ तक कि सरकार की आलोचना करने वाले सत्ता विरोधी और राजद्रोही तक करार दिये गये। मजे की बात यह है कि जिन अधिकारियों को आदेश देकर सरकार विरोधियों को जेल भेजने का प्रयास किया उन्हीं अधिकारियों पर भाजपा के ही विधायकों ने सरकार की छवि खराब करने का आरोप लगाते हुए अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया।
अब मान लीजिए भ्रष्टाचार के जो आरोप भाजपा विधायकों की ओर से से लगाये जा रहे हैं यही आरोप किसी मीडिया कर्मी या विपक्ष के नेता की ओर से लगाये गये है होते तो अब तक मीडिया कर्मी के विरूद्ध सरकार कार्रवाई अमल में ला चुकी होती। जैसा पिछले कुछ समय से इस सरकार के द्वारा किया जाता रहा है। विपक्ष और मीडिया साढ़े तीन सालों से जो कह रहा था वह चुनाव से डेढ़ साल पहले अपने ही कहने लगे हैं।
दरअसल न तो सरकार और न संगठन कुछ बेहतर कर पाया। यह बात संगठन के लोग समझ चुके हैं। संगठन की कार्यकारिणी भी पूरी तरह घोषित नहीं हो पाई। विभिन्न मोर्चे के अध्यक्ष भी अपनी कार्यकारिणी घोषित नहीं कर पाये हैं। एक सूत्र की मानें तो कार्यकारिणी के लिए लोग उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। हालांकि भाजपा जैसे संगठन के लिए कार्यकारिणी में शामिल करने के लिए लोग नहीं मिल रहे यह संभव नहीं लगता। पर कोई तो कारण है जो मोर्चा अध्यक्षों ने अपनी कार्यकारिणी घोषित नहीं की है।
भाजपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने तो यहाँ तक बताया कि विधायकों को इस बात का विश्वास हो चला है कि आगामी चुनावों में पार्टी की वापसी संभव नहीं है। इसलिए हर कोई इस समय हड़बड़ी में है। दिल्ली जाकर हाईकमान से मुलाकातों के दौर जारी है। बहाना अधिकारियों का या फिर राज्य के विकास के लिए बड़े नेताओं से भेंट करना होता है। पर पिछले साढ़े तीन साल तक मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ही दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व से मिलकर विकास कार्यों के लिए बात करते रहे। चुनाव से सवा साल पहले विधायकों और नेताओं ने मुख्यमंत्री की तर्ज पर केन्द्र से मिलना शुरू कर दिया है। राज्य के विकास की ही बात है तो वाया मुख्यमंत्री केंद्र तक अपनी बात पहुंचायी जा सकती है। आखिर इस राज्य में मुख्यमंत्री है एक।