@शशांक राणा
चमोली। आज मैठाणा गांव में भाद्र मास की सप्तमी के अवसर पर नन्दापाती कौथिक का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गांव की सभी महिलाओं ने मांगल गीत और जागरों के साथ माँ नन्दा को मायके बुलाया। माँ नन्दा को मायके बुलाने की इस परम्परा को नन्दापाती कहा जाता है।
हर वर्ष उत्तराखंड के अधिकांश गांवों में भाद्रपद मास की अष्टमी के दिन माँ नन्दा भगवती की एक सांकेतिक रूप में मायका आगमन व कैलाश विदाई का पर्व ‘ पाती ‘ का आयोजन किया जाता है ।
सर्वप्रथम पाती आयोजन से 3 दिन पूर्व एक कटोरी गेंहू को भिगोने डाला जाता है जो कि पाती के दिन तक अंकुरित हो जाते हैं जिसे आंचलिक भाषा मे ‘ब्यूड़ा’ कहा जाता है, साथ ही इस मौके पर एक आध दिन पूर्व ताजी धान(साठी) की बालियों को निकाल कर उसके बाद ‘च्यूड़े’ बनाये जाते हैं।आज के समय मे हमारे पहाड़ में जिस तरह अपनी धियाण को चैत्र माह में लड्डू या अरसे(कल्यो) देने की परंपरा का सतत रूप से निर्वहन किया जाता है उसी प्रकार माँ नन्दा को भी यह ‘ब्यूड़ा’ और ‘च्यूड़ा’ कल्यो स्वरूप दिया जाता है। इस पर्व पर माँ नन्दा का एक सांकेतिक स्वरूप कुणजे( वानस्पतिक नाम आर्टिमिसिया वलगेरिस) की टहनियों और पत्तियों से तैयार किया जाता है, जिसे ‘ पाती ‘ कहा जाता है। कुणजे की टहनियों और पत्तियों को सुबह सवेरे स्वच्छ स्थान के तोड़कर लाया जाता है। उसके बाद पूजा अर्चना और चूनर ओढ़ाकर देवी स्वरूप बनाया जाता है और बड़े सम्मान और श्रद्धा से एक स्थान पर स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया को माँ नन्दा का मायका आगमन कहा जा सकता है।
इसके बाद गांव मे पूरी-पकौड़ी हलुवा इत्यादि बनाया जाता है। साथ ही उस माँ नन्दा स्वरूप पाती के आँचल में,बगीचे से निकाली गई ताजी ककड़ी, मुंगरी(पहाड़ी भुट्टा) , च्यूड़ा ब्यूड़ा,अखरोट व पूरी -पकौड़ी को बांधा जाता है।
घर घर मे पूजा अर्चना के साथ इसके सामांतर में गांव में भी एक सामूहिक पाती का आयोजन किया जाता है जिसमे गांव के भूमियाल देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। इस मौके पर भी एक सामूहिक पाती का निर्माण किया जाता है। गांव की आदरणीय मातृशक्ति के द्वारा माँ नन्दा के आह्वान गीत (पैरी गीत) गाये जाते हैं, ढोल-दमाऊं की थाप और मंत्रोच्चार के साथ माँ भगवती के साथ भूमियाल, लाटू, हीत व अनेक देवी देवताओं का अवतरण होता है।
कुछ देर नृत्य के पश्चात सभी देवी देवताओं से समस्त भक्त, क्षेत्र व गांव की कुशलता की कामना करते हैं देवी देवता अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और शांत हो जाते हैं। इसके बाद वक्त आता है धियाण नन्दा को सांकेतिक रूप में कैलाश विदा करने का यह बहुत मार्मिक दृश्य होता है। सभी भक्त गणों की आंखे नम हो जाती है सामूहिक पाती पर सभी भक्त गण भेंट अर्पित करते हैं कल्यो बांधते हैं इसके पश्चात पाती को नम आंखों से विदा करते हैं। ततपश्चात पाती को स्वच्छ स्थान पर विसर्जित किया जाता है। पाती पर बांधे गए कल्यो को आंशिक रूप से पाती के साथ विसर्जित करने के बाद कल्यो को प्रसाद स्वरूप आपस में बांटकर खाते हैं। पाती को स्वच्छ स्थान पर विसर्जित करने पर पाती पर्व का समापन होता है।