@शब्द दूत ब्यूरो
अगले माह 3 अगस्त को देशभर में रक्षाबंधन का पर्व मनाया जायेगा। जहाँ पूरे देश में इसे भाई बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में जाना जाता है वहीं देवभूमि उत्तराखंड में इसे एक और नाम से भी जाना जाता है। यहाँ इसे जनेऊ पुन्यो (पूर्णिमा) कहा जाता है। खास तौर पर अलमोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ के गांवों में आज भी यह पर्व नया जनेऊ धारण करने और पुरोहित द्वारा यजमान को रक्षासूत्र बांधने का पर्व है।
रक्षा बंधन के दिन श्रावणी पूर्णिमा अर्थात जनेऊ पूर्णिमा के दिन गांव के बुजुर्ग नदी या तालाब के पास एकत्र होते हैं। जहां बाकायदा पंडित मंत्रोच्चार के साथ सामूहिक स्नान और ऋषि तर्पण कराते हैं। ऋषि तर्पण के बाद ही नया जनेऊ धारण किया जाता है। जनेऊ बनाने और विधिवत ऋषि तर्पण कराते आ रहे खटीमा निवासी पंडित सुरेश चंद्र जोशी के मुताबिक सामूहिक रूप से जनेऊ की प्रतिष्ठा के बाबाद जनेऊ बदलने की परंपरा अपनी सांस्कृतिक के विरासत परस्पर सद्भाव को बढ़ावा देता है। यह भी कहा जाता है कि बीते साल में जो भी कटुता आपसी संबंधों में आ गई है, उसे पुरानी जनेऊ के साथ उतार देना और नए जनेऊ के साथ आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़ने के लिए प्रेरित करना होता है।
ऋषितर्पण और जनेऊ धारण करने के अलावा इस दिन पंडित अपने यजमानों के घर-घर जाकर रक्षा धागा बांधते हैं। रक्षा धागा बच्चों, बूढ़ों तथा महिलाओं सभी को बांधा जाता है। काशीपुर निवासी पंडित दीपचंद्र जोशी ने बताया कि रक्षा का यह धागा मंत्रोचारण “एनबद्धोबलीराजा दानवेन्द्रों महाबल:, तेनत्वाम् अपिबंधनामि रक्षे मांचल मांचल:” के साथ कलाई पर बांधा जाता है, जिसमें अनादि शक्ति जगदीश्वर, ऋषिमुनि, माता-पिता तथा प्रकृति से प्रार्थना करते हुए वेद मंत्रों को आमंत्रित कर रक्षा सूत्र को धारण करने वाले और सम्पूर्ण संसार की रक्षा की कामना की जाती है।