काशीपुर । पर्यावरण संरक्षण को समर्पित संस्था प्रयास के संस्थापक शिवरत्न अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर काशीपुर में प्रदूषण जिम्मेदार ससरकारी विभागों के विरूद्ध कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने काशीपुर में स्टेशन रोड पर कई वर्ष पूर्व अधूरी सीवर लाइन डालकर करोड़ों रुपये बरबाद करने पर भी चिंता जताई है।
शिवरत्न अग्रवाल ने पत्र में लिखा है कि प्रदूषण बढ़ाने वाले तो बहुत हैं लेकिन उसके निवारण की जिम्मेदारी वाले विभागों उत्तराखंड जलनिगम , उत्तराखंड जलसंस्थान तथा क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी नींद में हैं।
उन्होंने बताया कि प्रदेश के सर्वाधिक तीन प्रदूषित शहरों में काशीपुर की गिनती प्रथम श्रेणी में आती है। प्रथम श्रेणी वाले विद्यार्थियों को तो पुरूस्कार दिया जाता है। तथा प्रदूषित शहर को प्रदूषण का ही तमगा दिया जाता है। जिसे देखने और सुनने वाला कोई नहीं है। अर्थात धन आवंटन के बाद शासन आँख मूंदे बैठा है, तो प्रशासन मौन धारण किये रहता है।
शिवरत्न अग्रवाल ने कहा है कि आज से 15-20 वर्ष पूर्व काशीपुर नगर को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नगर में लगभग ९ करोड़ रूपए की लागत से अधूरी सीवर लाइन डाली गयी थी । मानकों के अनुसार सीवर लाइन डाली गयी अथवा नहीं? पैसे तो खर्च हो गये लेकिन सीवर लाइन में तकनीकी दिक्कतें आने की वजह से वह चाालू नहीं हो पायी है। जिस ठेकेदार ने सीवर लाइन निर्माण कार्य किया वह कहता है कि उसे भुगतान नहीं जबकि जलनिगम अधिकारी कहते हैं कि लाइन ठीक नहीं डाली गयी। हमारा पैसा ठेकेदार की तरफ निकलता है।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा है कि जब जलनिगम ने लाइन डालने का कार्य अपने सामने कराया। आंशिक भुगतान भी कराया गया, तो फिर लाइन गलत क्यों ? और गलत थी तो इसके ऊपर पक्की सड़क क्यों बनवा दी गयी ? आगे को लाइन डलवाने का काम क्यों नहीं करवाया गया ? आखिर इस अधूरे प्रदूषित कार्य का दोष किसके माथे मड़ा जाये ? यह प्रकरण विवादों से घिरा है। तथा इन्हीं विवादों के कारण हमारे विद्वान पेयजल निगम के अधिकारियों ने मलजल वाहिनी लाइनों को रिजेक्ट करके सीवर शोधन की किसी नयी विधि को जन्म दिया और यह भी नहीं सोचा कि पूर्व में खर्च हुए जनता के पैसे का देनदार कौन होगा ?
श्री अग्रवाल ने कहा कि उनकी शासन तथा प्रशासन से मांग है कि वह जनता को बरगलाने के बजाय अन्य शहरों की भांति सीवर शोधन के कार्य को संपन्न कराने का प्रयास करें। क्योंकि इनकी सीवर शोधन की नयी विधि प्रणाली का अनुमोदन IIT दिल्ली ने भी नहीं किया है।
यही नहीं श्री अग्रवाल ने उत्तराखंड पेयजल निगम पर भी कछुआ गति से चलने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह भी सीवर शोधन का कार्य पर्यावरण संरक्षण का ध्यान न रखते हुए समय और धन की बर्बादी करने पर तुला है।
उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मांग की कि जनता की सुख -सुविधा के लिए काशीपुर को शीघ्र -अतिशीघ्र प्रदूषण मुक्त करवाने का प्रयास करें। सीवर लाइनों के द्वारा लाइन के बाद सीवर शोधन के लिए एसटीपी बनाया जाना था। जिसका निर्माण दो वर्ष पहले आरम्भ हो चुका है । सम्भवतः निर्माण कार्य पूरा करने की तिथि निकल चुकी होगी।
अभी कार्य आधा भी नहीं हुआ है। जिसमें यांत्रिक मशीनो की आपूर्ति तथा संचालन के लिए समय अलग से लगेगा। इसके अतिरिक्त दूसरा एसटीपी गैबिया नदी की तरफ प्रस्तावित है। तथा तीसरा एसटीपी भी प्रस्तावित है। कब बनेगा ? बनेगा भी या नहीं ? भविष्य के गर्भ में छिपा है। अभी तो प्राक्कलन तैयार हो रहें हैं। फिर उसमे करेक्शन लगेंगी। फिर उसको शासन को भेजा जायेगा। विभाग की कार्यप्रणाली बहुत ही सुस्त होने के कारण महीनों का काम वर्षों में होता है।