@विनोद भगत
काशीपुर । उत्तराखंड के महान लोकगायक स्व हीरा सिंह राणा किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। उनके गाये गीत उत्तराखंड में अमर हैं। बीते रोज उनका दिल्ली में अपने आवास पर निधन हो गया था। पूरे राज्य यहाँ तक कि विदेशों से उनके निधन पर शोक संदेश आये।
यहाँ काशीपुर में तमाम लोग पर्वतीय समाज से हैं। पच्चीस हजार से ज्यादा जनसंख्या बताई जाती है। हालांकि हीरा सिंह राणा को किसी एक समाज तक सीमित करना उचित नहीं होगा। वह उत्तराखंड की धरोहर हैं। चूंकि वह पर्वतीय समाज से थे। ऐसे में काशीपुर के पर्वतीय समाज का इस महान लोकगायक के निधन पर शोक के दो शब्द न कहना अपने आप में विचित्र है। विचित्र इसलिए कि यहाँ का पर्वतीय समाज किसी राजनीतिक व्यक्तित्व के निधन पर शोक या जन्म दिन पर बधाई देने में अग्रणी रहता है। वहीं इस लोकगायक के निधन पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न कर इस समाज की अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति प्रतिबद्धता का पता चलता है। वैसे किसी व्यक्ति विशेष का किसी के निधन पर शोक या जन्म दिन पर बधाई निजी मामला है लेकिन संस्था की चुप्पी समाज के प्रति संवेदनहीनता को दर्शाता है।
अफसोस की बात है कि नगर में एक बड़ा संगठन पर्वतीय समाज के नाम पर बना हुआ है। इस संगठन में जुड़े विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग अपने अपने तरीके से अपनी पार्टी के नेताओं के जन्मदिन और अन्य अवसरों पर उनके प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते। पर हीरा सिंह राणा के निधन पर यही लोग मौन नजर आये।
पर्वतीय सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने और उसका प्रचार प्रसार करने का दावा करने वाले हीरा सिंह राणा के निधन पर चुप्पी साधे रहे। ये कड़वा सच है। नेताओं की जी हूजूरी करना इनकी नजर में ज्यादा जरूरी है। वैसे स्थानीय लोगों द्वारा शोक व्यक्त न करने से हीरा सिंह राणा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो उन लोगों पर पड़ता है जो खुद को पर्वतीय संस्कृति का रखवाला कहते हैं।