@विनोद भगत
काशीपुर । यहाँ पिछले 20 वर्षों से कांग्रेस लगातार हार का मुंह देखती आ रही है। कहा जा रहा है कि इन हारों के पीछे हर चुनाव में नया चेहरा उतारना इसका एक मुख्य कारण रहा है।
दरअसल काशीपुर में कद्दावर और वरिष्ठ नेताओं के मुकाबले नये चेहरे के आने से पार्टी कार्यकर्ता और जनता में अविश्वास बढ़ने लगा। लंबे समय से पार्टी में रहने वालों की उपेक्षा कर एकदम नये चेहरे के आने से पार्टी के भीतर ही आपसी मतभेद उभरने लगे। वहीं वरिष्ठ नेता जिनके पास अनुभव और मजबूत जनाधार था। उनकी अपेक्षा नया चेहरा न तो कार्यकर्ताओं में और न जनता के सामने ठहर पाया। हालांकि कई बार जनता ने नये चेहरे पर तो भरोसा कर लिया लेकिन चंद रूठे कार्यकर्ताओं ने पार्टी प्रत्याशी को हार का स्वाद चखने को मजबूर कर दिया।
हालांकि अभी चुनाव दूर की बात है लेकिन 2022 के चुनावों के लिए जहाँ भाजपा ने अभी से जोर शोर से अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। वहीं स्थानीय कांग्रेस नेता पुतला फूंकने में व्यस्त नजर आ रहे हैं। उधर पार्टी का एक धड़ा इस बार किसी अनुभवी और वरिष्ठ नेता के पक्ष में तैयारी शुरू कर रहा है। कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बार भी अगर किसी नये चेहरे को मैदान में उतारा गया तो एक बार फिर जीत का स्वाद चख पाना मुश्किल है। दरअसल स्थानीय भाजपा की एक खासियत है कि पूरे पांच साल वह आपस में भले ही मतभेदों के बीच रहते हैं लेकिन ऐन चुनाव के मौके पर उनमें जबर्दस्त एकता दिखाई देती है। यही नहीं उनकी रणनीति ऐसी होती है कि दूसरे दलों के नेता व कार्यकर्ता भी भीतर ही भीतर भाजपा के मददगार हो जाते हैं।
पर कांग्रेस में इसका उल्टा होता है। पांच साल भाजपा को कोसते हैं और ऐन चुनाव के मौके पर अपनी ही पार्टी के नेता को कोसने लगते हैं। टिकट इसे क्यों मिला? इस लड़ाई के चलते वह चुनाव में जीत के निकट पहुंच कर भी हार का स्वाद चखा देते हैं।