@शब्द दूत ब्यूरो (25 अप्रैल, 2024)
उत्तराखंड की खूबसूरत वादियां इन दिनों धुएं के गुबार में लिपटी हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए वन विभाग के पास कोई ठोस प्लान नहीं है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य में परंपरागत तरीके झाप से जंगल की आग से निपटने का प्रयास किया जा रहा है। आग पर काबू के लिए हेलिकाॅप्टर या फिर सेना से मदद लेने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
उत्तराखंड में गढ़वाल से कुमाऊं तक जंगल आग से धधक रहे हैं। इससे अब तक 581 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में वन संपदा को नुकसान हुआ है, लेकिन वन विभाग सुलग रहे पहाड़ों में आग बुझाने के लिए झाप पर निर्भर हैं। वहीं, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के निर्देश के बाद भी अभी तक सुलगते जंगलों के लिए किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाई है।
अब तक राज्य में 490 घटनाएं हो चुकी हैं, जिससे 580 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र में वन संपदा को नुकसान हुआ है। वनाग्नि की अब तक की घटनाओं में 204 घटनाएं गढ़वाल और 242 कुमाऊं मंडल के जंगलों की हैं, जबकि 44 घटनाएं वन्य जीव क्षेत्र की हैं।
अपर प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा के मुताबिक वनाग्नि के मामले में राज्य में अब तक तीन नामजद मुकदमे दर्ज किए गए हैं। कुछ अज्ञात के खिलाफ भी मुकदमे हैं। वन संरक्षक और मुख्य वन संरक्षक से हर दिन वनाग्नि से संबंधित रिपोर्ट मांगी जा रही है। वनाग्नि की घटना पर डीएफओ को मौके पर जाने के निर्देश दिए गए हैं।