Breaking News

भू राजनीतिक तनाव के बीच भारत और चीन के व्यापार संबंध: एक विस्तृत विश्लेषण, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चुनौतियाँ और संभावनाएँ

@विनोद भगत

भारत और चीन, एशिया की दो प्रमुख आर्थिक शक्तियाँ, वैश्विक व्यापार तंत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। भले ही दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव और सीमाई विवाद समय-समय पर उभरते रहे हैं, फिर भी व्यापारिक दृष्टिकोण से इनका संबंध अत्यंत महत्त्वपूर्ण और व्यापक है। इस लेख में भारत-चीन व्यापार संबंधों की प्रकृति, इसकी चुनौतियों, असंतुलन, और भविष्य की संभावनाओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई है।

1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत और चीन के व्यापार संबंध प्राचीन काल से ही सक्रिय रहे हैं। रेशम मार्ग के माध्यम से दोनों देशों के बीच व्यापार होता था। आधुनिक समय में, विशेष रूप से 2000 के दशक के बाद, इन संबंधों में तीव्र वृद्धि हुई है। 2001 में द्विपक्षीय व्यापार महज़ 3 अरब डॉलर था, जो अब 135 अरब डॉलर से भी अधिक हो गया है।

2. द्विपक्षीय व्यापार का वर्तमान स्वरूप

भारत चीन से अत्यधिक मात्रा में वस्तुएँ आयात करता है, जिनमें मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मशीनरी व कलपुर्जे, फार्मास्यूटिकल कच्चा माल (Active Pharmaceutical Ingredients), केमिकल्स और प्लास्टिक उत्पाद, खिलौने और घरेलू उपयोग की वस्तुएँ आदि शामिल हैं।

वहीं भारत जो वस्तुएँ चीन को निर्यात करता है, उनमें लौह अयस्क और खनिज, जैविक रसायन और पेट्रोकेमिकल्स, कपास व वस्त्र, समुद्री उत्पाद आदि हैं।

3. व्यापार असंतुलन: एक चिंताजनक पक्ष

भारत-चीन व्यापार संबंधों का सबसे बड़ा मुद्दा है – व्यापार असंतुलन। भारत हर साल चीन से लगभग 50-60 अरब डॉलर अधिक आयात करता है जितना वह निर्यात करता है। यह असंतुलन भारत की आत्मनिर्भरता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है और घरेलू उद्योगों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है।

4. भू-राजनीतिक तनावों का व्यापार पर प्रभाव

गलवान घाटी संघर्ष (2020) के बाद भारत सरकार ने चीनी ऐप्स जैसे TikTok, WeChat आदि पर प्रतिबंध लगाया और कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से चीनी कंपनियों को बाहर कर दिया। इस दौरान भारत ने विदेशी निवेश नीति में बदलाव कर सीमा साझा करने वाले देशों के लिए अतिरिक्त मंजूरी अनिवार्य कर दी, जिससे चीनी कंपनियों की भारत में सीधी पहुँच कठिन हुई।

5. भारत की रणनीति: आत्मनिर्भर बनने की ओर

भारत अब ‘मेक इन इंडिया’, ‘वोकल फॉर लोकल’, और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों के ज़रिए चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में प्रयासरत है। सरकार का लक्ष्य है कि देश में ही इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाए, API (फार्मा कच्चा माल) के घरेलू निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाए, छोटे और मध्यम उद्योगों को सशक्त बनाया जाए।

6. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव: एक अवसर

चीन में मजदूरी लागत के बढ़ने, पर्यावरणीय नियमों के सख्त होने और अमेरिका-चीन तनावों के चलते कई वैश्विक कंपनियाँ भारत को विकल्प के रूप में देखने लगी हैं। यह भारत के लिए निवेश, निर्माण और निर्यात बढ़ाने का सुनहरा अवसर हो सकता है।

7. चुनौतियाँ व समाधान

चुनौती संभावित समाधान की बात अगर करें तो व्यापार घाटा घरेलू उत्पादन और निर्यात को प्रोत्साहन, तकनीकी निर्भरता रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा, निवेश में संकोच पारदर्शी नीति और बुनियादी ढांचे में सुधार, चीनी कंपनियों का दबदबा समाप्त कर भारतीय ब्रांड और स्टार्टअप्स का संरक्षण की दिशा में काम करना होगा।

8. भविष्य की दिशा

भले ही राजनीतिक स्तर पर भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण हों, लेकिन व्यापारिक स्तर पर परस्पर निर्भरता बनी हुई है। भारत को दीर्घकालीन रूप में ऐसे मॉडल अपनाने होंगे जिससे वह न केवल चीन से आयात कम करे, बल्कि वैश्विक निर्यातक के रूप में उभरे।

भारत और चीन के व्यापार संबंध द्वंद्वात्मक हैं – एक ओर आर्थिक लाभ की संभावना, दूसरी ओर रणनीतिक आशंकाएँ। भारत को संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए घरेलू उद्योगों को मज़बूत करना होगा और वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। दीर्घकालीन रणनीति और आत्मनिर्भरता ही भारत को चीन के आर्थिक प्रभाव से मुक्त कर सकती है।

Check Also

हर बरसात में डूबते शहर: जलभराव की समस्या पर एक व्यापक विश्लेषण, आकस्मिक आपदा नहीं है जलभराव

🔊 Listen to this @विनोद भगत भारत में हर वर्ष बरसात का मौसम केवल किसानों …

googlesyndication.com/ I).push({ google_ad_client: "pub-