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मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे से खास रिपोर्ट: उत्तराखंड आंदोलनकारी शहीद स्मारक स्थल की उपेक्षा , देखिए एक्सक्लूसिव वीडियो

@विनोद भगत

मुजफ्फरनगर(15 सितंबर 2023)। “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पे मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा।”बड़ी श्रद्धा से ये कहा जाता है लेकिन सिर्फ कहने के लिए है।

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि आज शब्द दूत मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 27 साल पहले शहीद हुए उत्तराखंड आंदोलनकारियों के स्मारक स्थल पर पहुंचा। जहां स्मारक के प्रवेश द्वार पर उत्तराखंड संस्कृति विभाग के द्वारा लगाये गये बोर्ड की बदहाल हालत को देखकर शहीदों के प्रति सरकारों के रवैए का पता चलता है। सरकारें कोई भी रहीं हों उत्तराखंड में हर वर्ष सूबे के मुखिया यहां आकर शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धा जताते हैं। लेकिन किसी भी सरकार को या उसके मंत्रियों को इस शहीद स्मारक के बाहर लगे बोर्ड की बदहाली नजर नहीं आती। ये बताता है कि शहीद स्मारक कम से कम सरकार के लिए कितनी अहमियत रखता है।

लेकिन इसके लिए सरकार की ही उपेक्षा का रवैया कहा जाये तो गलत होगा। विपक्षी दलों की भी उतनी ही जिम्मेदारी है।
शब्द दूत को यहां पप्पू शर्मा मिले। पप्पू शर्मा के पिता पं महावीर शर्मा ने इस शहीद स्मारक के लिए एक बीघा जमीन दान में थी। उन्होंने शब्द दूत से बातचीत में कहा कि कोरोना की वजह से यहां रंगाई पुताई नहीं हो पाई थी। अब इस बारे में उत्तराखंड सरकार और संस्कृति विभाग को अवगत कराया गया है। जल्द ही इसकी दशा सुधारी जाएगी।
बहरहाल उत्तराखंड आंदोलनकारी शहीद स्मारक के प्रति उपेक्षा का रवैया अपने आप में उन शहीदों के प्रति अन्याय है।

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