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बाहुबली राकेट और जलमग्न दिल्ली@विकास और विनाश का संगम, वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की खरी खरी

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

भारत के लिए अच्छी खबर ये है कि भारत ने चंद्रयान -3 का श्रीगणेश हो रहा है लेकिन बुरी खबर ये है कि देश की राजधानी दिल्ली जलमग्न है और यमुना के रौद्र रूप का मुकाबला नहीं का पा रही है । विकास और विनाश की इन दो कहानियों को एक साथ पढ़े बिना आप देश की वास्तविक तस्वीर को नहीं समझ सकते। जाहिर है कि हमारा विकास एकतरफा है। देश को जिस संतुलित विकास की जरूरत है उस दिशा में हमारी प्रगति आज भी सवालों के घेरे में है।

हम भारतीय वैज्ञानिकों को शुभकामनाएं देते हैं कि उन्होंने चंद्रयान-3 जैसा उपहार देकर हमें विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणीय बनाने का करिश्मा कर दिखाया है ,किन्तु हमारी संवेदनाएं दिल्ली के लोगों के साथ भी हैं जो यमुना की बाढ़ में डूबे जा रहे हैं। दिल्ली की बाढ़ हमारे अनियोजित विकास की असलियत दुनिया को बता रही है। ये प्रमाणित कर रही है कि अनियोजित और अवैज्ञानिक विकास कभी भी लोकोपयोगी नहीं हो सकता।

आज जब आप ये खबर पढ़ चुके होंगे तब दोपहर दो बजकर 35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान 3 मिशन की लॉन्चिंग होगी। मिशन की रिवर्स काउंटिंग जारी है। इस बीच इसरो के बाहुबली रॉकेट की चर्चा है जिससे चंद्रयान 3 को प्रक्षेपित किया जाएगा। 130 हाथियों के वजन बराबर बना राकेट 43.5 मीटर लंबा और 6.4 लाख किलो वजन वाला यह एलवीएम 3 रॉकेट इससे पहले 6 सफल अभियानों को अंजाम दे चुका है।ये अभियान माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की नहीं बल्कि देश की उपलब्धि है,क्योंकि इसे बनाने में इसरो को इसे बनाने में 15 साल का समय लगा। तब देश में किसी और दल की सरकार थी। यह इसरो की ओर से बनाया गया सबसे ताकतवर रॉकेट है।

अब वापस दिल्ली की और लौटते है। देश और दुनिया में तमाम संस्कृतियां नदियों कि किनारे ही विकसित हुईं है। दिल्ली भी यमुना कि किनारे बसा शहर है जिसे देश की राजधानी बनाया गया। लेकिन पिछले 74 साल में दिल्ली को जिस तरह से विकसित किया गया उसमें यमुना का कोई ख्याल नहीं रखा गया ,दिल्ली दुनिया कि दूसरे तमाम देशों की राजधानियों की तरह चमाचम तो दिखाई देती है किन्तु बरसात में यमुना की नाराजगी से दिल्ली का मेकअप धुल जाता है । मेकअप धुलना बुरी बात नहीं है । बुरी बात ये है कि दिल्ली कि अनियोजित विकास से क्षुब्ध यमुना दिल्ली के लोगों की जान की दुश्मन बन जाती है।

दिल्ली में यमुना नदी का रौद्र रूप दिल्लीवालों ने पहली बार देखा। बारिश तो थम गई लेकिन, यमुना के जलस्तर में रिकॉर्डतोड़ बढ़ोतरी ने दिल्ली की नींद उड़ा दी है। क्या गलियां, क्या घर और क्या सड़कें हर ओर बस पानी ही पानी है। लोगों का जीवन अस्त-वयस्त हो गया है। निचले इलाकों के लोगों को घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। सड़कों पर लग रहा लंबा जाम भी रोजाना आने-जाने वाले लोगों का सिरदर्द करा रहा है। दिल्ली को इस जलप्लावन से राहत मिलेगी लेकिन यमुना दिल्ली वालों को जो दंश देकर जाएगी उसे दिल्ली वाले अगली बरसात तक भुला नहीं पाएंगे। यमुना को नाराज करने कि लिए दिल्ली पर आबादी का बढ़ता बोझ तो है ही ,साथ ही सरकार की अकर्मण्यता भी है। सरकार किस दल की है ये बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। आज केजरीवाल की है ,कल शीला कौल की थी।
दिल्ली का असली विकास कांग्रेस कि समय में हुआ ,इसलिए आप ताजा विभीषका कि लिए कांग्रेस को दोष दे सकते हैं। किन्तु एक दशक से दिल्ली कि भाग्यविधाता माननीय केजरीवाल ही हैं इसलिए उन्हें भी माफ़ नहीं किया जा सकता। दिल्ली का दुःख और चंद्रयान-3 कि प्रक्षेपण की ख़ुशी को एक साथ गड्डमड्ड नहीं किया जा सकता। ख़ुशी मानाने कि लिए इंसान का बेफिक्र होना जरूरी है। भारत में इंसान बेफिक्र नहीं है । उसे मणिपुर की भी चिंता है और दिल्ली की भी। एक चिंतित देश ख़ुशी कैसे मना सकता है भला ?

दिल्ली और चंद्रयान-3 को को भगवान भरोसे छोड़कर हमारे आराध्य फ्रांस की यात्रा पर है। वे वहां दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार ने बीते 9 साल में देश की 45 करोड़ आबादी को गरीबी की रेखा से बाहर निकाल लिया है। वे ये नहीं बताते कि उनकी ही सरकार देश की 80 करोड़ आबादी को दो साल से हर महीने 5 किलोग्राम अन्न मुफ्त में देकर जिंदा रखे हुए है। यदि 45 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर आ गए हैं तो ये मुफ्त का अन्न अब तो 80 करोड़ लोग क्यों खा रहे हैं ? कम से कम ये संख्या आधी तो हो ही जाना चाहिए था । कितना अच्छा होता कि हमारे प्रधानमंत्री चंद्रयान-3 की लांचिंग कि समय देश में होते ? लेकिन कैसे होते ,उन्हें तो फ्रांस जाना था।

दिल्ली को जलमग्न छोड़कर फ्रांस गए हमारे प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि उनका फ्रांस से लगाव 40 साल पुराना है । मुमकिन है कि वे संघ प्रचारक कि रूप में चार दशक पहले फ्रांस गए हों। वे फ्रांस में कह रहे हैं कि ‘ वर्ल्ड ऑर्डर ‘ में भारत खास रोल निभा रहा है । हर चुनौती से निपटने में भारत का अनुभव और प्रयास दुनिया के लिए मददगार साबित हो रहा है। मोदी जी ने कहा, “भारत का हजारों वर्ष का पुराना इतिहास, भारत का अनुभव, विश्व कल्याण के लिए भारत के प्रयासों का दायरा बहुत बड़ा है। भारत ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ है और भारत ‘मॉडल ऑफ डायवर्सिटी’ भी है। यह हमारी बहुत बड़ी शक्ति है, ताकत है। ‘

भारत के लोगों को अब तक नहीं मालूम कि भारत विविधताओं का मॉडल कब से है। बीते 9 साल में भारत की विविधता में एकता को ही सबसे ज्यादा खतरों और हमलों का समाना करना पड़ रहा है । आज भी सरकार ने इस विविधता पर समान नागरिक संहिता की तलवार लटका रखी है। भारत को विविधता में एकता का मॉडल बनाने कि लिए शायद समान नागरिक संहिता ही एकमात्र रास्ता बचाए हो।
बहरहाल सबसे अच्छी बात ये रही कि फ्रांस में अभी तक मोदी जी ने कांग्रेस का स्मरण नहीं किया। अर्थात वे अपने सर से कांग्रेस का भूत उतारने का प्रयास कर रहे हैं। यदि मोदी जी कि सर से कांग्रेस का भूत उतर जाए तो भाजपा ,कांग्रेस और देश सभी का भला हो सकता है। सब मिलजुलकर डूबती दिल्ली को भी बचा सकते हैं। सबके विकास कि लिए सबका साथ आवश्यक है।

हमें गर्व होता है कि मोदी जी के नेतृत्व में भारत 10 साल में दुनिया की 10वीं से 5वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गय। ये गर्व सिर्फ भारतीयों को ही नहीं होता है, आज दुनिया यह विश्वास करने लगी है कि भारत को 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने में देर नहीं लगेगी। दुर्भाग्य ये है कि ये विश्वास हम भारतीयों को नहीं होता। हो भी कैसे ,क्योंकि देश में तो मोदी जी का सुर और स्वरूप अलग ही होता है । वे यहां एकला चलो की नीति पर काम करते हैं। विपक्ष से उनका संवाद शून्य है । किसी से चाय-पान का रिश्ता भी नहीं बचा। सबसे अदावत मानकर बैठे हैं मोदी जी। हम तो चाहते हैं कि वे जिसे अमरीका और फ्रांस में होते हैं वैसे ही भारत में भी रहें । सबसे मिलें-जुले । अपने प्रतिद्वंदियों से भी । प्रतिद्वंदियों ने कौन सी उनकी चाय की उधारी दबा रखी है ?

चलिए हम सब चंद्रयान-3 की कामयाबी,दिल्ली की दशा सुधरने और मोदी जी की फ़्रांस यात्रा की कामयाबी के लिए समवेत प्रार्थना करें । शायद भगवान हम लोगों की प्रार्थना सुन ले।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

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