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सुभारती गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय की अनुमति, फीस, काउंसलिंग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर, कल सुनवाई

@मनीष वर्मा(लेखक वॉइस आफ नेशन के संपादक हैं)

देहरादून (02 मार्च 2022)। पूर्व में देश भर के 300 छात्रों का भविष्य एवं 2 साल ख़राब करने वाले श्री देव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज के ही प्रबंधन ने अब नए नाम से दुबारा वही कहानी शुरू कर दी है और अब खेल और बड़े स्तर पर खेला जा रहा है।

आपको बता दे कि पूर्व में 2016 से 2019 तक सुभारती मेडिकल कॉलेज में 300 छात्रों को न तो पढ़ाया गया और न ही इस कॉलेज की परीक्षाएं हो पाई और अंत में खुद की ही हाई कोर्ट में विवादित रास बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी के नाम से परीक्षा करवाकर अरबो रूपये की रकम छात्रों से हड़प ली गयी और फर्जी मार्कशीट थमा दी गयी।

जब छात्रों और अभिभावकों को फर्जीवाड़ा का पता चला तो उन्होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट की शरण ली और ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हुआ की माननीय न्यायमूर्ति ने डाइस से बैठे बैठे ही डी जी पी उत्तराखंड को निर्देश दिए कि मैं जब लंच के बाद वापिस सीट पर आऊं तब तक कॉलेज सील हो जाना चाहिए और हुआ भी ऐसा ही।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जब उत्तराखंड सरकार से इस कॉलेज के बारे में रिपोर्ट मांगी तो उत्तराखंड सरकार के 3 आई ऐस अधिकारियो के आदेश एवं प्रिंसिपल देहरादून मेडिकल कॉलेज के शपथ पत्र तथा सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड राज्य के अपर महाधिवक्ता जे के सेठी एवं जितेंद्र कुमार भाटिया द्वारा स्टेटस रिपोर्ट इस कॉलेज के सम्बन्ध में दाखिल की गयी और लिखा कि कई केस एवं विवाद इस कॉलेज के विभिन्न न्यायालयों में लंबित है। और इन्होने जमीन के पूर्व स्वामियों को पूर्ण भुगतान नहीं किया है और बैंको में सम्पत्ति बंधक है और एग्रीमेंट के मुताबिक शर्तो का पालन नहीं किया और बैंको का लोन अदा नहीं किया है। और हम आपको बता रहे है की वास्तव में ये हालत आज की  भी वही है।

बाद में इस रिपोर्ट के आधार पर उत्तराखंड सरकार पर दबाब बढ़ा और क्यूंकि अनिवार्यता प्रमाण पत्र यानी कॉलेज खिलने की एनओसी तत्कालीन सरकार ने घूसखोरी के चलते दी थी तो २०१९ की सरकार को उन छात्रों को राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट करना पड़ा । और राज्य के ईमानदार और नेक छवि वाले निदेशक एवं तत्कालीन सचिव ने सुभारती कॉलेज और ट्रस्ट को अटैच करके 1 अरब 33करोड़ की पेनल्टी इन पर लगाई जिसमे से अभी इनसे 72 करोड़ वसूलना बाकी है। इसके अलावा सभी जमीनं भूमि भवन बैंको में पर्व स्वामियों के नाम से बंधक है। बैंको के सिम्बॉलिक कब्जे में है और डीआरटी उत्तराखंड में वाद लंबित है।

किसी भी राज्य में मेडिकल कॉलेज खोलने हेतु राज्य के चिकित्सा शिक्षा निदेशालय द्वारा गठित कमिटी की निरिक्षण रिपोर्ट और निदेशालय की संस्तुति की आवश्यकता होती है। और उसके बाद शासन उस रिपोर्ट के आधार पर कॉलेज खोलने हेतु अनिवार्यता प्रमाण पत्र यानी एनओसी जारी करने की संस्तुति मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली हाई पावर कमिटी में रखता है। उसके बाद हाई पॉवर कमेटी की संस्तुति के बाद सरकार एनओसी यानी अनिवार्यता प्रमाण पत्र या एलओआई जारी करती है।

इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ जबकि निरीक्षण भी हुआ और छह सदस्यों की कमेटी ने , निदेशक और तत्कालीन सचिव अमित सिंह नेगी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि न तो इनके नाम से जमींन है न ही अस्पताल क्रियाशील है और इनसे राज्य सरकार को धोखाधड़ी के एवज में72 करोड़ भी वसूलना बाकी है। परन्तु सचिवालय में बैठे उत्तराखंड के 3000 करोड़ के एनएच घोटाले के आरोपित अधिकारी पंकज कुमार पांडेय ने निदेशालय की रिपोर्ट का संज्ञान लिए बिना और बिना हाई पावर कमिटी में प्रकरण को रक्खे इस संस्था को पुनः एनओसी यानि अनिवार्यता प्रमाण पत्र या एलओआई जारी कर दिया।

अब इन खिलाड़ियों ने नया खेल यह खेला की इस देनदारी वाले कोलम को हटाने के लिए इसी विवादित सचिव एवं अनु सचिव सुनील सिंह से मिल कर एक झूठा शपथ पत्र दिया कि ये खुद ही इस देनदारी को देंगे।  जब तक देनदारी पूरी नहीं हो जाती ये अपनी किसी संपत्ति को बंधक नहीं रखेंगे तथा कोई लोन नहीं लेंगे पर  यहाँ के अधिकारियों ने इनकी साथ में लगी बैलेंस शीट को देखा ही नहीं और पुनः एलओआई जारी कर दिया।
भला ऐसा तरीका सरकार सब उद्योगों वाले और व्यापारियों को दे दे कि उन्होंने  ही करोड़ों की देनदारी देनी हो और वो खुद ही अपनी निजी गारंटी एक 10 रुपये के शपथ पत्र पर दे तो व्यापारी वर्ग कितना खुश होगा।
पर यहाँ तो नियम कानून सेटिंग वाले लोगो के लिए होते है और आम व्यक्ति के खिलाफ 10 हजार भी देनदारी सरकार के पार्टी हो तो उसका खून चूस ले।

जैसा कि आपको ऊपर बता चुके है की रास बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी पहले ही बदनाम है फर्जी एमबीबीएस की डिग्री बाँटने के लिए तो अब भी इन्होने अपनी ही इस फर्जीवाड़ा करके बनाई हुई यूनिवर्सिटी से इस गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय की संबध्दता दिखाई हुई है जबकि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना को लेकर विवाद अभी माननीय उच्च न्यायलय नैनीताल में लंबित है। क्यूंकि पूर्ववर्ती हरीश रावत  सरकार ने गलत तथ्यों के आधार पर और जमीन पर स्टे लगे होने के दौरान ये यूनिवर्सिटी गलत कागजों और गलत तथ्यों के आधार पर पास की थी तो इसको चुनौती दी गयी है। और माननीय चीफ जस्टिस के यहाँ से अपील स्वीकार हो कर सिंगल बेंच में लंबित है।

हालांकि पिछली बार छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ के लिए हरीश रावत जिम्मेदार थे तो अबकी बार ये कारनामा त्रिवेंद्र और तीरथ के राज में हो गया है।  देखना अब यह होगा कि आगे छात्रों का भविष्य इतने गहरे षड्यंत्र के बीच बिना फीस कमिटी की बैठक हुए फिर एक बार सीधे 24 लाख के लगभग फीस देने पर भी होगा या एनएमसी और सरकार इस पर पुनविचार करेगी क्यूंकि नए मेडिकल कॉलेज की फीस कभी इतनी नहीं होती जितनी की 10 साल पुराने मेडिकल कॉलेज की हो और यहाँ तो 10 साल पूफाने और विवादों से भरे कॉलेज की भी 24 लाख के लगभग निर्धारित कर दी है जिसमे 5 लाख तो सिक्योरिटी ही है । वो भी ऐसे मेस और छात्रावास की जहा कई लोगो की जान गयी हो,आत्महत्या हुई हो और खाने में कॉक्रोच मिल जाता हो। हॉस्टल में भी पानी भर जाता है।

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