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काशीपुर विधानसभा :भाजपा के लिए चुनौती बनी आम आदमी पार्टी , कांग्रेस त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी, बसपा ने जोर मारा, पढ़िये मतदान से पहले की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

@विनोद भगत

काशीपुर । कल होने वाले मतदान के लिए अब गेंद मतदाताओं के पाले में है। विधानसभा क्षेत्र के मतदाता किसको आने वाले पांच सालों के लिए अपना कप्तान (विधायक) चुनते हैं यह कल ईवीएम के हवाले हो जायेगा। 10 मार्च को परिणाम से पता चलेगा कि विधायकी का ताज किसी नये के सिर सजेगा या फिर बीस वर्षों की परंपरा काशीपुर के मतदाता निभायेंगे?

फिलहाल आज की अगर बात की जाये तो इस बार मुकाबला बड़ा दिलचस्प है और परिणाम को लेकर पहले से आकलन कर पाना काफी मुश्किल है। मैदान में खड़े हर प्रत्याशी का अपना या पार्टी का मजबूत जनाधार है। भाजपा और कांग्रेस के पास अपना अपना कैडर वोट है। भाजपा के लिए बीस वर्षों की विधायकी के कार्यकाल का लेखा जोखा है। लेकिन लगातार एक ही परिवार को चुनाव मैदान में उतारना पार्टी के लोगों को ही नहीं कुछ मतदाताओं को भी नागवार गुजरा है। हालांकि भाजपा के पास एकमात्र तुरूप का पत्ता मोदी का नाम है। जिसके दम पर हरभजन सिंह चीमा ने अब तक के चुनावी जंग जीती है। लेकिन इस बार चीमा खुद नहीं उनके पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा सामने है। पिता के जीत के सिलसिले को बरकरार रख पायेंगे या नहीं? यह भविष्य के गर्भ में है। यहाँ इस बात का उल्लेख भी करना आवश्यक होगा कि शहर के कुछ नामचीन भाजपा नेताओं ने इस चुनाव में प्रचार से खुद को अलग रखा। इसका नुकसान किस हद तक भाजपा को यहाँ से हो रहा है यह अपने आप में बड़ी बात है। प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं के उनके समर्थन में अलग से बयान जारी न होना उनक लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

बात करते हैं कांग्रेस की तो तमाम दावेदारों को दरकिनार कर अप्रत्याशित रूप से नरेंद्र चंद्र सिंह को मैदान में उतारा। चुनावी प्रचार में भाजपा के मुकाबले नरेंद्र चंद्र सिंह को अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं का भरपूर समर्थन मिलता नजर आया। पूर्व सांसद के सी सिंह बाबा के पुत्र के नाम से पहचाने जाने के बाद नरेंद्र चंद्र सिंह के लिए भी यह चुनावी समर आसान नहीं रहा। चुनाव प्रचार के दौरान खुद के सी सिंह बाबा के मैदान में आकर जनसंपर्क का लाभ उन्हें मिलता नजर आ रहा है। उधर पार्टी के स्थानीय नेताओं के नरेंद्र चंद्र सिंह के समर्थन में लगातार आते बयानो ने उन्हें मजबूत किया है।

इस बार के विधानसभा चुनाव का सबसे चर्चित चेहरा आम आदमी पार्टी के दीपक बाली के रूप में रहा। कांग्रेस और भाजपा जैसी पुरानी राष्ट्रीय पार्टी के मुकाबले आम आदमी पार्टी ने जिस दमदार तरीके से इस चुनावी जंग में ताल ठोकी है वह अन्य प्रत्याशियों के सामने अलग से ही खड़े नजर आ रहे हैं। महज दो साल से राजनीत में सक्रिय होकर खुद की पहचान एक प्रखर वक्ता और कुशल राजनेता की छवि बनाकर उन्होंने अपनी विधानसभा में मजबूत छवि बना ली है। दीपक बाली ने खुद को किसी के सहारे नहीं वरन अपने बलबूते पर राजनीति के इस मुकाम पर ला खड़ा किया है यहाँ तक कि वह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो गये हैं। उनक पास इन दलों की तरह कैडर वोट नहीं वरन खुद का अपना और अपने डेढ़ वर्ष के राजनीतिक जीवन का किया गया काम है। एक नये राजनेता का पुरानी अनुभवी पार्टियों के सामने खुद को मजबूत कर पाना दीपक बाली के मजबूत इरादों को जाहिर करता है। इस दौरान जिस तरह से उन्होंने शहर में अपने पक्ष में माहौल बनाया है वह काशीपुर की पुरानी दमदार राजनीति को लौटा रहा है।

उधर बहुजन समाज पार्टी के गगन कांबोज भी एक समाजसेवी से राजनीति में आकर खुद को स्थापित करने को तैयार है। कोरोना काल में उन्होंने अपनी जो छवि बनाई और व्यवस्था के प्रति आक्रोश जाहिर किया अब वह विधायक बनकर व्यवस्था सुधारने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं।

बहरहाल इस चुनावी जंग में भाजपा के त्रिलोक सिंह चीमा के लिये आम आदमी पार्टी के दीपक बाली बड़ी चुनौती है तो कांग्रेस के नरेंद्र चंद्र सिंह इसे त्रिकोणीय बना रहे वहीं गगन कांबोज अपने तरीके से जीत की कोशिश में जुटे हैं। उक्रांद के मनोज डोबरियाल भी पर्वतीय वोटों के साथ साथ उत्तराखंड की दशा और दिशा बदलने की पुरजोर कोशिश में हैं। सफलता कौन हासिल कर पाता है यह पहले से आकलन कर पाना काफी मुश्किल है।

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