@शब्द दूत ब्यूरो
नई दिल्ली। चुनाव आयोग के खिलाफ मद्रास होईकोर्ट की टिप्पणियों पर आयोग ने जो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, उसपर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को सलाह दी कि वो मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों को सही भावना में ले। वहीं, मीडिया की रिपोर्टिंग पर कोर्ट ने कहा कि मीडिया वही रिपोर्ट करता है, जो कोर्ट में होता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘चुनाव आयोग मद्रास हाई कोर्ट की ‘हत्या के आरोप’ की टिप्पणी को सही भावना में ले और उसे कड़वी गोली के रूप में निगल ले, जो एक डॉक्टर मरीज की बीमारी का इलाज करने के लिए देता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव निकाय से कहा कि ‘हमें हाईकोर्ट को आजादी देनी होगी। आप भले ही संवैधानिक संस्था हैं लेकिन न्यायिक समीक्षा से बाहर नहीं हैं।’
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘अदालत में जो कुछ हुआ उसे मीडिया को पूरी तरह से रिपोर्ट करना चाहिए। हम आयोग की चिंताओं से निपटने के लिए एक छोटा आदेश जारी करेंगे। हमें न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता की रक्षा करनी होगी। हाई कोर्ट के जजों को लगता है कि वे असुविधाजनक सवाल पूछने के लिए स्वतंत्र हैं।’
जस्टिस ने कहा कि ‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि चुनाव आयोग लोकतंत्र के लिए जिम्मेदार है। हम चाहते हैं कि लोकतंत्र का प्रत्येक अंग स्वतंत्र हो। हम चुनाव आयोग पर निशाना नहीं लगा रहे हैं। मुद्दा थोड़ा और जटिल है। हम अपने जजों को यह नहीं बता सकते कि मामले में केवल दलीलों पर सुनवाई हो। लोकतंत्र तभी जीवित रहता है जब संस्थाएं मजबूत होती हैं।’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि जज सोच कर आते हैं कि यह बोलना है, किसी बात के क्रम में कई बात कही जाती है। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि जो टिप्पणी हुई उसका केस से संबंध नहीं था, यह टिप्पणी भी नहीं थी, एक तरह से आयोग के खिलाफ फैसला था। जस्टिस शाह ने कहा कि हर जज का अलग स्वभाव होता है। कई बार टिप्पणी भी सार्वजनिक हित में की जाती है।
चुनाव आयोग ने कहा कि चुनाव आयोग पर लोगों की हत्या का आरोप लगाना सही नहीं है। जज अपने आदेश में यह भी लिखें कि टिप्पणी का अर्थ क्या था। इसपर जस्टिस शाह ने कहा कि ऐसी मांग सही नहीं है, जजों के बातचीत के क्रम में कोई टिप्पणी करना एक मानवीय प्रक्रिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट आयोग की बात समझता है लेकिन कोर्ट को हाई कोर्ट को हतोत्साहित भी नहीं करना चाहिए। वे न्यायिक प्रक्रिया के महत्वपूर्ण आधार हैं। परिप्रेक्ष्य को समझें।
जस्टिस शाह ने कहा कि ‘कभी-कभी जब कुछ कहा जाता है तो यह बड़े जनहित के लिए होता है। कभी-कभी जज निराश होते हैं, वे नाराज होते हैं। आपको इसे सही भावना में स्वीकार करना चाहिए। वे भी इंसान हैं।’ जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि ‘हम चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं, अन्यथा नहीं लें। यह बेलगाम नहीं है क्योंकि अंततः लोकतंत्र संस्थानों में विश्वास पर जीवित रहता है। आप जजों को नियंत्रित नहीं कर सकते। जो मुझे सही लगेगा मैं आदेश में दर्ज करूंगा।’