@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो
क्या देश की सरकारें कोरोना से निपटने में बुरी तरह नाकाम साबित हो गई है। केन्द्र से लेकर तमाम राज्यों के उच्च न्यायालयों को आदेश जारी करने पड़े हैं कि कोरोना को लेकर इंतजाम नाकाफी हैं और सरकारें इसकी जानकारी दें। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तो हदें पार करते हुए उच्च न्यायालय के पांच शहरों में लॉकडाउन लगाने के आदेश को ही चुनौती दे दी है और साफ कह दिया कि सरकार लॉकडाउन नहीं लगायेगी। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिल्ली में बेड और आक्सीजन की कमी पर केंद्र और राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा है कि न तो यहाँ बेड की कमी है और न आक्सीजन की।
महाराष्ट्र में भी बाम्बे हाइकोर्ट ने सरकार को नाइंतजामी पर कड़ा रुख अपनाया है। वहीं गुजरात हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि अगर सरकार की तरफ से कोरोना के असल आंकड़े छिपाए जा रहे हैं, तो इससे जनता का सरकार के प्रति विश्वास कम होगा और घबराहट का भी माहौल बनेगा।
मध्यप्रदेश में कोरोना संकट और मरीजों के इलाज में बदइंतजामियों के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने अपना 49 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण के हालात भयावह हैं। ऐसे हालात में हाईकोर्ट मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता है। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कोरोना के ज़रूरतमंद मरीज को एक घंटे के भीतर इंजेक्शन उपलब्ध होना चाहिए।
कुल मिलाकर ये चिंताजनक है कि कोरोना पर सरकारें इंतजाम करने के बजाय अपने राजनीतिक एजेंडे को ज्यादा महत्व दे रही हैं। अपने राज्य के बिगड़े हालात को नजरअंदाज कर दूसरे राज्य जहाँ कि उनके दल की सरकार नहीं वहाँ की तस्वीर को दिखा रही हैं।
अगर मीडिया सवाल उठाता है तो उसका विरोध उसे नकारात्मक धारा से जुड़ा बता रहे हैं। लेकिन बिडम्बना यह है कि उच्च न्यायालय के आदेश पर भी सरकार जब अवहेलना करती है तो लगता है कि सरकारें अपनी कमियों पर उठती उंगलियों को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं। वास्तव में स्थिति चिंताजनक है।