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मकराना के खूबसूरत पत्थर के पीछे है दर्दनाक दास्तान

 

जान जोखिम में डालकर तैयार होता है मार्बल पत्थर 

राहुल सक्सैना  जयपुर से 

मकराना का संगमरमर का पत्थर भारत ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इमारतों में लगे हुए पत्थरों को देखकर आप इसकी खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकते। लेकिन आप जानते हैं कि इस पत्थर की खूबसूरती के पीछे कठिन और दुर्लभ मेहनत है। कई सौ मीटर गहरी खदानों से निकालकर न जाने कितने पसीने और कठिन प्रक्रिया से गुजर कर यह खूबसूरती इमारत को मिलती है।बताया जाता है कि यहाँ अक्सर खान ढ़हने की घटनाएं भी होती रहती हैं।  जिसमें मजदूरों की मौत भी हो जाती है।  मकराना और आसपास के इलाकों से यहां 50 हज़ार से ज़्यादा मज़दूर काम करते हैं, मज़दूर इतनी गहरी खान में लोहे की सीढ़ी, रस्सी के सहारे उतरते हैं या फिर उन्हें मार्बल ढोने वाली ट्रोली में बिठाकर नीचे उतार दिया जाता है।मकराना की मार्बल खानें 60 डिग्री के कोण पर काटी जाती हैं इसीलिए ट्रॉली  पत्थर से टकराते हुए नीचे उतरती है।

300 फीट गहरी खदान

मज़दूर रोज़ 250 से 400 फीट के पाताल जैसी गहरी खानों में रोज़ाना उतरते हैं।  खान के अंदर भी मज़दूर मार्बल के ब्लॉक तोड़ने के लिए बारूद का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा यहां ज़्यादातर खानें उत्तर से दक्षिण दिशा में कई किलोमीटर तक फैली हैं इसीलिए बारिश के दिनों में इनमें पानी भर जाता है और हज़ारों मज़दूर बेरोज़गार हो जाते हैं। मकराना निवासी अब्दुल रशीद जिनकी खुद की  मार्बल पत्थर की  प्रोसैसिंग यूनिट है , बताते हैं कि मकराना के पत्थरों की  पूरे विश्व में भारी मांग है। अब्दुल रशीद ने हमारे संवाददाता को बताया कि आगरा के ताजमहल में जो पत्थर लगा है वह उनके पूर्वजों ने ही मुहैया कराया था।  यह उनका पुश्तैनी कारोबार  है।  भारत के अलावा कतर सऊदी अरब बहरीन अमेरिका कनाडा समेत कई देशों में मकराना के पत्थर की  सप्लाई होती है। 

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