.@विनोद भगत
उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी संगठन के भीतर सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। कम से कम हटाए गए त्रिवेंद्र सिंह रावत के असहज बयान तो यही इशारा कर रहे हैं। गद्दी संभालते ही नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जिस तरह ताबड़तोड़ उनके फैसले बदले उससे आहत पूर्व मुख्यमंत्री खुद को ‘अभिमन्यु’ साबित करने में जुटे हैं। जिसको धोखे से घेरकर मारा गया।
सल्ट उपचुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का नाम गायब होना भी इस बात का संकेत है कि मामला सिर्फ यहीं पर खत्म नहीं हुआ है। अभी ‘अभिमन्यु’ को और घाव सहने होंगे। पूर्व मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों और सलाहकारों को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद त्रिवेंद्र राज में नियुक्त लगभग 114 दायित्वधारियों को मुक्त करने की सुगबुगाहट भी हो रही है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य में पार्टी को और डैमेज न करें इसको लेकर भी भाजपा की टॉप लीडरशिप खासी सतर्कता बरत रही है। एक खतरा ‘अभिमन्यु’ के बागी हो जाने का भी बना हुआ है। अगर वे बागी होते हैं, तो डैमेज कंट्रोल के लिए अभी से प्लान भी बनना शुरू हो गया है, क्योंकि उत्तराखंड में अगले विधानसभा चुनाव के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा है।
बीजेपी का जो अतीत है, उसमें गुजरात के केशुभाई पटेल से लेकर मध्य प्रदेश की उमा भारती और यूपी के कल्याण सिंह तक ऐसे अनेकानेक उदाहरण मौजूद हैं। जैसे ही इन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, ये लोग अपने को सहज नहीं रख पाए और अंतत: ‘बागी’ ही हुए। त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपने को सहज नहीं रख पा रहे हैं। उनकी पीड़ा लगातार शब्दों का रूप ले रही है। वे यह कहते आए हैं कि उन्हें नहीं मालूम, क्यों हटाया गया।
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में उन्होंने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहा, ‘जब अभिमन्यु को कौरवों द्वारा छल से मारा जाता है तो मां द्रौपदी शोक नहीं करती हैं। मां द्रौपदी हाथ खड़े करके बोलती हैं, इसका प्रतिकार करो पांडवो। राजनीति में तो ये घटनाएं घटित होती रहती हैं।’ उनके इस वक्तव्य के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि उन्होंने अपने समर्थकों को गोलबंद होने का इशारा किया है।
त्रिवेंद्र सरकार के निर्णयों को भी जिस तरह से तीरथ सिंह रावत सरकार पलट रही है, उसका भी यह मतलब निकल रहा है कि बीजेपी लीडरशिप त्रिवेंद्र सिंह रावत की छाया से बाहर आना चाहती है। इन सबके मद्देनजर आने वाले कुछ महीनों में उत्तराखंड की राजनीति काफी उठापटक वाली हो सकती है। ये देखना भी दिलचस्प होगा कि तीरथ सिंह रावत राज्य की बिगड़ी स्थितियों के मद्देनजर डबल इंजन पर सवारी गांठने में कामयाब हो पाते या नहीं।