बिहार में बहुमत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और राज्य के वरिष्ठ पार्टी नेता सुशील मोदी को क्या निपटाना चाहता है? पिछले तीन दिनों के घटनाक्रम से साफ है कि वो चाहे सुशील मोदी हों या प्रेम कुमार या नंद किशोर यादव या विनोद नारायण झा, इन सभी वरिष्ठ नेताओं को अब बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व सरकार से अलग रखना चाहता है, इसलिए जिन्हें मंत्री पद का अनुभव नहीं वैसे तारकिशोर प्रसाद को सीधे उप-मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन सभी के पास यह सवाल है कि बीजेपी आखिर अपने सभी वरिष्ठ नेताओं को एक साथ हाशिए पर लाकर नए लोगों को मौका क्यों दे रही है?
सबसे पहले, बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई जिसमें कोई नेता नहीं चुना गया। सारे विधायक केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का इंतजार करते रह गए। वो आए लेकिन सीधे स्टेट गेस्ट हाउस गए और वहां सुशील मोदी को यह फरमान जारी कर दिया कि आपको विधानमंडल दल का नेता अपने करीबी तारकिशोर प्रसाद और उपनेता रेणु देवी के नाम की घोषणा करना है।
क़ायदे से ये घोषणा भाजपा विधानमंडल दल की बैठक में होनी चाहिए थी लेकिन चूंकि सभी लोग नीतीश कुमार के आवास पर एनडीए विधानमंडल दल की बैठक के लिए जुटे थे तो सुशील मोदी ने वहां घोषणा की और बाद में भरे मन से ट्वीट भी किया, जबकि उनका स्टाफ भी यह मानकर चल रहा था कि नेता वही रहेंगे और उप-मुख्यमंत्री भी।
इसके बाद न तो सुशील मोदी, नीतीश कुमार के साथ दावा पेश करने गए, न ही पार्टी की किसी सरकार गठन से सम्बंधित किसी बैठक के लिए उन्हें बुलाया गया। हद तो तब हो गई जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शपथ ग्रहण के बाद कुछ नेताओं के साथ पटना के एक होटल में कुछ घंटों के लिए बैठे तो सुशील मोदी को बुलाया तक नहीं गया।
लेकिन सवाल है कि सुशील मोदी के साथ बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ऐसा अपमानजनक व्यवहार क्यों कर रहा है? जानकारों की मानें तो इसका एक ही जवाब दिखता है कि बीजेपी को अब बिहार में नीतीश कुमार से सहानुभूति रखने वाले नेता नहीं चाहिए क्योंकि उन्हें लगता है कि जब तक नीतीश कुमार के प्रति आक्रामक रूख नहीं अपनाया जाएगा तब तक सता अपने पाले करने में कामयाब नहीं हो सकते। सुशील मोदी विरोधी नेताओं का मानना है कि हर दिन ट्वीट और बयान देकर उन्होंने बीजेपी को नीतीश का पिछलग्गू बना दिया था, जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी और नाराजगी देखी जा सकती थी।