14 नवंबर को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की जयंती होती है। इस मौके पर भाजपा और उसके समर्थकों से हमारा निवेदन है कि वे अपनी पार्टी की वैबसाइट को थोड़ा अच्छे से देख लें। बात सुनने में थोड़ा अटपटी लगती है ना ! आप सोचेंगे कि नेहरू के जन्मदिन पर भाजपा की वैबसाइट देखने को क्यूँ कहा जा रहा है ! आखिर नेहरू का भाजपा की वैबसाइट से क्या कनैक्शन है ?
यह तो सभी जानते हैं कि भाजपा और उनका आईटी सेल, नेहरू से ख़ासी खुन्नस में प्रतीत होता है और उनके बारे में नित नए तथ्य गढ़ता और प्रसारित करता रहता है। इन गढ़े गए तथ्यों की शृंखला इतनी बड़ी है कि यदि व्हाट्स ऐप से एकत्र करके इनको संकलित कर लिया जाये तो नेहरू की समानांतर जीवनी निकल आएगी,जिसे नेहरू भी पढ़ लें तो चकरा जायें कि अरे,अपने बारे में ये तो मैं जानता ही नहीं था !
लेकिन इन सब बातों का भाजपा की वैबसाइट से क्या लेना-देना है ? दरअसल भाजपा की वैबसाइट में एक ऑनलाइन लाइब्रेरी है। इस ऑनलाइन लाइब्रेरी में अन्य लोगों के अलावा नेहरू की किताबें भी हैं और नेहरू पर लिखी किताबें भी हैं, जिन्हें डाउनलोड भी किया जा सकता है। इनमें – डिस्कवरी ऑफ इंडिया, नेहरू- ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स, सोवियत रशिया-इंप्रेशंस, जैसी नेहरू द्वारा लिखित किताबें हैं तो बी.आर.नंदा लिखित- नेहरूज : मोतीलाल एंड जवाहर लाल और ब्रिटिश पत्रकार फ्रैंक मोरेस द्वारा लिखित जीवनी भी भाजपा की वैबसाइट पर पीडीएफ़ फॉर्म में मौजूद है. भाजपा की वैबसाइट पर मौजूद नेहरू से संबन्धित किताबों को इस लिंक पर जा कर देखा जा सकता है।
http://library.bjp.org/jspui/handle/123456789/19
यह तो हुई किताबों की बात. अब आते हैं- नेहरू के बारे में आईटी सेल द्वारा फैलाई जाने वाली अफवाहों पर. अक्सरहां आईटी सेल नेहरू के मुस्लिम होने का प्रचार ज़ोरशोर से करता रहता है,गोया मुस्लिम होना कोई जघन्य अपराध हो ! कायदे से तो घृणा फैलाना अपराध है,मुस्लिम या किसी भी धर्म का अवलंबी होना कतई कोई गुनाह नहीं है. पर आईटी सेल पूरे ज़ोरशोर से नेहरू के खानदान के मुस्लिम होने की अफवाह को नेहरू के अपराध की तरह प्रचारित करता रहता है ! आईटी सेल वालों से निवेदन है कि अगली बार ऐसा मेसेज फॉरवर्ड करने से पहले भाजपा की वैबसाइट पर मौजूद बी.आर.नंदा लिखित किताब – नेहरूज : मोतीलाल एंड जवाहर लाल- पर जरूर नजर डाल लें. यह किताब पढ़ लेंगे तो गयासुद्दीन जैसे काल्पनिक चरित्र को नेहरू का दादा बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी. भाजपा की वैबसाइट पर मौजूद यह किताब बताती है कि जवाहर लाल नेहरू के दादा का नाम गंगाधर था और मोती लाल नेहरू के दादा का नाम लक्ष्मीनारायण था.
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह डाला कि नेहरू कभी भगत सिंह और उनके साथियों से जेल में मिलने नहीं गए. कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का इस बात से क्या लेना-देना था,यह तो प्रधानमंत्री जी ही बेहतर जानते होंगे. लेकिन इंटरनेट पर हिन्दी में उपलब्ध नेहरू की जीवनी- मेरी कहानी- प्रधानमंत्री या उनका भाषण में लिखने वाले देख लेते तो संभवतः ऐसा न कहते ! “मेरी कहानी” के पृष्ठ संख्या 286 पर भगत सिंह से जेल में मिलने का विवरण देते हुए नेहरू लिखते हैं “भगत सिंह से यह मेरी पहली मुलाक़ात थी. मैं जतीन्द्र दास वगैरह से भी मिला.भगत सिंह का चेहरा आकर्षक था और उससे बुद्धिमत्ता टपकती थी. वह निहायत गंभीर और शांत था. उसमें गुस्सा नहीं दिखाई देता था.उसकी दृष्टि और बातचीत में बड़ी सुजनता थी.” नेहरू उस वक्त भगत सिंह और उनके साथियों से मिले जब वे राजनीतिक कैदियों के अधिकारों के लिए भूख हड़ताल कर रहे थे. इसी भूख हड़ताल के दौरान जतिन दास शहीद हो गए. नेहरू ने जतिन दास का जिक्र करते हुए लिखा “जब मैं उससे मिला, उसे काफी दर्द हो रहा था. बाद में वह उपवास से ही भूख हड़ताल के इकसठवें रोज चल बसा.”
भाजपा की ही वैबसाइट पर मौजूद एक अंग्रेजी पुस्तक की भूमिका में नेहरू का महिमामंडन करते हुए लिखा है : “भारत के लिए सेवा और त्याग के मामले में पंडित जवाहर लाल नेहरू का रिकॉर्ड अभूतपूर्व है.देश की वर्तमान आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान के उनके दृष्टिकोण से मतभिन्नता रखते हुए भी उनकी प्रतिबद्धता, साहस,दृढ़ता और निस्वार्थ सेवा भाव पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता.”
यह गजब है कि जिन नेहरू की लिखी और जिन नेहरू पर लिखी आधा दर्जन से अधिक किताबें भाजपा की अपनी वैबसाइट की ऑनलाइन लाइब्रेरी में मौजूद हैं,उन नेहरू के बारे में जब कुछ लिखना होता है तो भाजपा का आईटी सेल कल्पना के घोड़े बेलगाम तरीके से दौड़ाते हुए उनका खल चरित्र प्रस्तुत करने के लिए फर्जी तथ्य गढ़ता और परोसता है !
नेहरू से मतभिन्नता होना एक बात है और उनका चरित्र हनन करना अलग बात है. कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि नेहरू,भाजपा के मातृ संगठन के प्रति उदारता बरतने की सजा दुनिया से विदा होने के बाद भी पा रहे हैं. जिन पटेल ने गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया,कठोरता से पेश आए और प्रतिबंध हटाने के लिए घुटना टेकने के लिए मजबूर करने वाली शर्तें रखी,उन पटेल के सामने संघ-भाजपा आज भी नतमस्तक है. दूसरी तरफ 1962 के चीन युद्ध के बाद कम्युनिस्टों के प्रति खुन्नस के चलते नेहरू ने संघ के प्रति काफी उदारता बरती,यहां तक कि गणतंत्र दिवस की परेड में भी आरएसएस को हिस्सा लेने का अवसर दिया. वह नेहरू दुनिया से जाने के दशकों बाद भी अफवाहबाजी और चरित्र हनन का शिकार हो रहे हैं !
अंततः फिर यह निवेदन करना है कि आईटी सेल और उनके द्वारा व्हाट्स ऐप में नेहरू पर बांटे जा रहे ज्ञान के प्रसारको, नेहरू से मतभिन्नता रखो पर अफवाहबाजी न करो और कम से कम नेहरू के बारे में भाजपा की वैबसाइट पर मौजूद किताबों पर ही दृष्टिपात कर लो !