देश आज 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। हम आज ही के दिन आजाद हुये थे। विदेशियों की गुलामी से और यह सोचकर खुश हुये थे कि हमारा अपना शासन होगा। सरकारें हमारी अपनी बनने लगी। आने वाली खुशहाली के आनंदातिरेक में हम झूमते रहे। आज 74 साल हो गये लेकिन क्या हम खुशहाल हुये? ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।
काशीपुर में आज एक तस्वीर ने एहसास करा दिया कि आजादी के बाद हम कितने खुशहाल हो गये। हर प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से अपन उपलब्धियों का बखान करते आये हैं। पर क्या धरातल पर उनकी उपलब्धियां हकीकत में हैं?
नंगे बदन घूमते नौनिहालों की यह तस्वीर उद्वेलित करती है। प्रधानमंत्रियों के उपलब्धियों के दावे निरर्थक हो जाते हैं। जब तक एक भी ऐसी तस्वीर देश में मौजूद है। बिडम्बना की बात तो यह है कि ऐसी तस्वीरें लेने वाला देशविरोधी करार दिया जाता है। कहा जाता है कि प्रगति की असली तस्वीर लेनी चाहिए। आखिर असली तस्वीर होती कौन सी है? नेताओं की फूल मालाओं से लदी तस्वीरें क्या देश की असली प्रगति की तस्वीर मान ली जाये।
देश के 80 करोड़ लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के वर्तमान सरकार के दावे को ही सच मान लिया जाये तो इस तस्वीर में दिखाई देने वाले ये नौनिहाल 80 करोड़ में नहीं आते?
अब दलगत राजनीति से परे जाकर, व्यक्तिपूजक बनने के बजाय देश के लिए ही नहीं देश के लोगों के लिये भी अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। देश में रह रहे लोगों से ही देश बनता है यह ध्यान रखना होगा। एक व्यक्ति देश नहीं होता। 130 करोड़ देशवासियों से देश हैं। पर इस अवस्था के लिए आप किसी एक सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। हर सरकार इसके लिए जिम्मेदार है। चाहें मौजूदा सरकार हो या पूर्ववर्ती सरकारें।