नेशनल बी बोर्ड (NBB) की स्थापना भारत सरकार द्वारा वर्ष 2006-07 में की गई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारत में मधुमक्खी पालन और उसके उत्पादों को बढ़ावा देना है। भारत जैसा देश, जहां पारंपरिक मौन पालन से घरेलू जरूरतों को ही पूरा किया जाता है, राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा संगठन बनाया जाना जरूरी था जो शहद उत्पादन को एक व्यवसाय का रूप दे सके। लेकिन एनबीबी की वेबसाइट बताती है कि अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बोर्ड की स्थापना के पिछले 15 वर्षों पर नजर डालें तो मौन पालन के धरातल पर बहुत ही कम काम या यूं कहें कि काम नगण्य ही है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
भारत सरकार के नेशनल बी बोर्ड यानि एनबीबी की वेबसाइट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। वेबसाइट से पता चलता है कि पिछले 15 वर्षों में मौन पालन विषय पर कितनी गंभीर है। मौन पालन के क्षेत्र में काम कर रहे क्षेत्र में पंजाब सबसे आगे है। जहां मौन पालन के क्षेत्र में कुल मिलाकर लगभग 200 इकाइयां (इकाइयां जिसमें शहद उत्पादक संस्थाएं, व्यक्तिगत उत्पादक, वैज्ञानिक/सहायक कार्यकर्ता, समान बनाने वाले और बोर्ड सदस्य इत्यादि सम्मिलित हैं) कार्य कर रही हैं। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां कुल 186 ऐसी इकाइयां काम कर रही हैं। 53 इकाइयों के साथ हरियाणा तीसरे नंबर पर, जबकि 49 इकाइयों के साथ राजस्थान चौथे नंबर पर है। आर्गेनिक शहद के लिए विख्यात उत्तराखंड में मात्र 11 इकाइयां ही काम कर रही हैं। सबसे बुरी स्थिति पूर्वोत्तर राज्यों की है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में तो इन इकाइयों की संख्या शून्य है। यानि पूर्वोत्तर राज्यों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया है।
नेशनल बी बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर शहद उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2017-18 में 1100 लाख के सापेक्ष 1111 लाख खर्च किए गए। वर्ष 201819 में 800 लाख के सापेक्ष कुल 677 लाख व्यय किए। जबकि चालू वित्त वर्ष 2019-20 में अब तक कुल 27.90 लाख खर्च हुए हैं।
इसके अतिरिक्त गुजरात के आणंद में एक टेस्टिंग लैब लगाए जाने की भी योजना है। आंकड़ों को इकट्ठा करने के लिए एक मोबाइल एप्प और बी पोर्टल बनाने की भी योजना है। शहद उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए ‘नेशनल बी कीपिंग एंड हनी मिशन’ (NBHM) भी स्थापित किए जाने की योजना है। इसके अतिरिक्त मौन पालक वेबसाइट पर जाकर अपना पंजीकरण भी करवा सकते हैं।