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प्रसंगवश : हनुमान जयंती नहीं, जन्मोत्सव कहें : पं दीप चंद्र जोशी

@शब्द दूत ब्यूरो

काशीपुर । आज हनुमान का जन्म दिन पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर इस अवसर पर बधाई संदेश भी खूब दिये जा रहे हैं। 

हनुमान के जन्म दिवस को लेकर एक चर्चा है कि आज उनका जन्म दिन है न कि जयंती। जन्म दिन और जयंती में आखिर क्या फर्क है। इसको लेकर भी बहस छिड़ी है। हालांकि जन्म दिन कहने वाले और जयंती कहने वाले दोनों की ही हनुमान के प्रति आस्था और विश्वास में कोई कमी नहीं है।

रामभक्त भगवान हनुमान का जन्मोत्सव है और पूरे देश में इस दिन धूम रहती है। लोग तरह-तरह से भगवान हनुमान को खुश करने की कोशिश करते हैं ताकि उनकी कृपा बनी रहे। जहां एक तरफ देश में इस दिन के लिए तैयारियां जारी हैं वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया में एक अलग बहस जारी है।

सोशल मीडिया में हनुमान जन्मोत्सव को लेकर  कहा जा रहा है कि हनुमान जयंती नहीं बल्कि जन्मोत्सव मनाया जाना चाहिए। कहा जा रहा है कि जयंती उन लोगों की मनाई जाती है जो इस दुनिया में नहीं हैं, जबकि भगवान हनुमान को चिरंजीव होने का वरदान है और वो आज भी धरती पर विद्यमान हैं।

पं दीप चंद्र जोशी

इस बारे में काशीपुर के पंडित दीप चंद्र जोशी से शब्द दूत ने जानना चाहा कि क्या कहा जाए जयंती या जन्मोत्सव। पं दीप चंद्र कहते हैं कि हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है।

मतलब, इन सात व्यक्तियों में परशुराम, राजा बलि, हनुमान, विभिषण, ऋषि व्यास, अश्वत्थामा और कृपाचार्य। हिंदू पुराणों के अनुसार इस धर्म के सभी भगवानों में से एकमात्र हमेशा धरती पर रहने वाला भगवान माना गया है।

पं दीप चंंद्र ने शास्त्रों का उल्लेख करते हुए बताया कि

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।

कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

इसका भावार्थ बताया कि इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

पं दीप चंद ने बताया कि पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान हनुमान को चिरंजीव होने का वरदान भगवान श्री राम और माता सीता से मिला था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब हनुमानजी माता सीता की खोज करते हुए लंका में पहुंचे और उन्होंने भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया तो वे बहुत प्रसन्न हुईं। इसके बाद माता सीता ने हनुमानजी को अपनी अंगूठी दी और अमर होने के वरदान दिया।

उनके धरती पर होने को लेकर समय-समय पर कई तरह के दावे किए गए लेकिन कभी उनकी सत्यता साबित नहीं हो पाई। इसके बावजूद हिंदू धर्म में हनुमान जी को चिंरजीव माना जाता है जो धरती पर विचरण करते रहते हैं।

पं दीप चंद्र ने कहा कि पुराणों के अनुसार कलयुग में हनुमान गंधमार्दन पर्वत पर निवास करते हैं। एक कथा के अनुसार जब अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव हिमवंत पार कर गंधमार्दन के पास पहुंचे थे। उस समय भीम सहस्त्रदल कमल लेने गंधमार्दन पर्वत के जंगलों में गए थे, यहां पर उन्होंने भगवान हनुमान को लेटे हुए देखा। इसी समय हनुमान ने भीम का घमंड भी चूर किया था।

पं दीप चंद्र ने कहा कि  जयंती उन लोगों की होती है जो अब इस संसार में नहीं हैं वहीं जो उस धरती पर मौजूद हैं उनका जन्मदिन या जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान हनुमान का भी जन्मोत्सव ही मनाया जाना चाहिए जयंती नहीं। यह शास्त्र सम्मत भी है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में पश्चिमी सभ्यता के चलते  लोगों ने जन्मोत्सव को छोटा कर जयंती बना दिया है वैसे दोनों का शाब्दिक अर्थ एक ही है। भगवान चाहे राम हो, कृष्ण हो या हनुमान हो उनके जन्म दिवस को जन्मोत्सव के रूप में ही मनाया जाता है। जैसे कृष्ण जन्माष्टमी होती है और राम नवमी मनाई जाती है। इन सभी दिनों को देवताओं के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जयंती को भी जन्मोत्सव के रूप में ही मनाया और पुकारा जाना चाहिए।

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