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रोचक कहानी – “नेताजी शेर या जानवर” :नेताजी को जानवर कहने पर बवाल शेर बताकर माफी मांगी विपक्ष के नेता ने लेकिन नेताजी के बेटे ने सच्चाई बता दी

@विनोद भगत

नेताजी “जानवर” नहीं “शेर” हैं

पूरे शहर या यूं कहें कि पूरे देश में भूचाल आ गया था। टीवी चैनलों पर लगातार कार्यक्रम चल रहे थे। डिबेट पर डिबेट हो रही थी। एंकर चिल्ला कर विपक्ष के नेताओं को कोस रहे थे। आप विपक्ष में हो लेकिन मर्यादा भूल गये हो। देश के विरोध में बात कर रहे हो।

दरअसल विपक्ष के एक नेता ने सत्ताधारी दल के शीर्ष नेता को खूंखार जानवर की संज्ञा दी थी। सत्ता से जुड़े हुए नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश फैल रहा था। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और विपक्ष के नेता को लेकर तरह तरह के बयान आ रहे थे। विपक्ष के नेता को देशविरोधी की संज्ञा दी गई। हालांकि विपक्ष के नेता ने देश के लिए कोई टिप्पणी नहीं की थी अलबत्ता सत्ता के शीर्ष नेता को जानवर जरूर कह दिया था। सत्ताधारी दल को अवसर मिल गया था। दरअसल अगले महीने में एक राज्य में चुनाव भी होने थे। ऐसे में सत्ता धारी दल की ओर से इस विरोध प्रदर्शन को और हवा दी जा रही थी।

विपक्ष के नेता की इस टिप्पणी पर  मीडिया में भूचाल आ गया। प्राइम टाइम डिबेट में चीख-पुकार शुरू हो गई—नेताजी को जानवर कह दिया गया! समर्थकों में उबाल आ गया। न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज की पट्टी दौड़ने लगी:
“विपक्ष का अपमानजनक बयान: नेताजी को बताया जानवर!”
“देशवासियों की भावना आहत!”
“माफ़ी नहीं तो गिरफ्तारी!”

नेताजी के समर्थन में अगले ही दिन जगह-जगह जुलूस निकाले गए। पोस्टर और बैनर लहराए गए:
“हमारा नेता जानवर नहीं है!”
“विपक्षी नेता को माफ़ी मांगनी ही होगी!”
“नेताजी का अपमान, देश का अपमान!”

सड़कें नारों से गूंज उठीं। सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड करने लगे: #नेता_का_अपमान_नहीं_सहेंगे #देश_का_गर्व_नेताजी

एक बड़े राज्य में चुनाव से पहले मिला ऐसा मौका कहाँ छोड़ते नेताजी और उनकी रणनीतिक टीम। जनता की भावनाओं को हवा देना, अपने प्रति सहानुभूति जगाना—यही तो लोकतंत्र में ‘वोट प्रबंधन’ की कुंजी होती है।

टीवी डिबेट्स में सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ताओं ने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी:
“नेताजी को जानवर कहना केवल उनका नहीं, हमारे पूरे लोकतांत्रिक सिस्टम का अपमान है।”
“अगर आज नेताजी को जानवर कहा जा सकता है, तो कल देश को भी कुछ कहा जाएगा।” यह मीडिया ने अपनी तरफ से जोड़ दिया ताकि सनसनी फैल जाये और उनका चैनल नंबर वन चैनल कहलाये।

कई चैनलों पर विशेषज्ञ बुलाए गए। एक मनोवैज्ञानिक ने कहा, “किसी को जानवर कहना अमानवीय है।”नेताजी का घोर अपमान है। विपक्ष बौरा गया है।

जिन्हें जानवर कहा गया वह नेताजी कैमरों के सामने आते तो बस आंखें नीची कर लेते, मानो बहुत आहत हों। जनता को नेताजी की चुप्पी में भी एक गूंज सुनाई दी: सम्मान की पुकार। वो इतना कहते कि यह सिर्फ मेरा अपमान नहीं वरन मेरी जाति के सभी लोगों का अपमान है। इस विपक्ष के नेता ने पूरी जाति को अपमानित किया है।

बहरहाल पूरे देश में हर शहर खासकर चुनाव वाले राज्य में इस आक्रोश को खूब हवा दी गई। सत्ता से जुड़े नेताओं ने अनेक थानों में एफआईआर तक दर्ज करवाई। मामला काफी तूल पकड़ गया।

अंततः विपक्ष की ओर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई। सैकड़ों कैमरों के सामने विपक्षी नेता ने  कहा,
“मुझे खेद है। मैं अपने शब्दों के लिए माफी मांगता हूं। नेताजी जानवर नहीं हैं, वह तो शेर हैं।”
कहते ही हॉल तालियों से गूंज उठा।

खैर मामला थम गया।

उधर नेताजी के घर में भी हलचल कम नहीं थी। नेताजी का बेटा चिंटू, जो अभी कक्षा पाँच में पढ़ता था, उस दिन स्कूल से लौटा और सीधा अपनी माँ के पास पहुंचा।

“मम्मी… वो पापा को जानवर कहने वाले अंकल ने माफी मांग ली है!”
माँ मुस्कराई, “हाँ बेटा, वो तो बहुत बुरा कहा था ना उन्होंने?”
चिंटू थोड़ा सोचते हुए बोला, “पर मम्मी… एक बात समझ में नहीं आई।”

“क्या?” माँ ने पूछा।

“आज स्कूल में मैडम ने पाँच जानवरों के नाम लिखने को कहा था। सब बच्चों ने ‘शेर’ का नाम लिखा। अब पापा को जानवर कहने वाले अंकल ने माफी मांगते हुए भी कहा कि पापा ‘शेर’ हैं। तो क्या शेर जानवर नहीं है? या फिर मैडम गलत पढ़ा रही हैं?”

माँ चुप। नेताजी कहीं चुनावी सभा के लिए तैयार हो रहे थे बेटे की बात सुनकर अचकचा कर उसकी ओर देखने लगे। असहजता होकर आत्ममंथन करने लगे। जिस बात पर उनके समर्थक अपनी जीत से उत्साहित होकर नेताजी की जय जयकार कर रहे थे उसी जीत को उनके ही घर में उनके ही बेटे ने हार में बदल दिया था।

उधर चिंटू तो अपनी धुन में था। बोला, “और मम्मी, अगर शेर जानवर है, तो अंकल ने माफ़ी मांगते हुए भी पापा को जानवर ही कहा ना? फिर सब लोग ताली क्यों बजा रहे थे? माफ़ी मांगने में ये कैसी चालाकी है?”

माँ ने बेटे को चुप कराते हुए कहा, “बेटा, राजनीति में शेर जानवर नहीं होता, वो चुनावी चिह्न और भाषणों का प्रतीक बन जाता है।”

चिंटू थोड़ा उदास हो गया। “तो हमें स्कूल में झूठ पढ़ाया जाता है?”

पीछे से नेताजी ने धीरे से कहा, “नहीं बेटा, राजनीति में सच्चाई किताबों से थोड़ी अलग होती है।”

रात को कमरे में अकेले बैठकर नेताजी ने अपना चेहरा आईने में देखा। आज पहली बार उन्हें उस मासूम सवाल में राजनीति की गहराई दिखी।
‘क्या मैं सच में शेर हूं? या सिर्फ़ एक चुनावी प्रतीक?’

टीवी पर फिर वही बहस चल रही थी—कि आखिर विपक्ष झुक गया और माफी मांगते हुये नेताजी को शेर बता दिया।

नेताजी ने चैनल बदल दिया।

नेताजी सोफे पर बैठे हैं। सामने अख़बार पड़ा है, जिसमें हेडलाइन है—“विपक्षी नेता ने माफी मांगी: नेताजी को शेर बताया।”

चिंटू दीवार पर टंगे जानवरों के चार्ट को देख रहा है, जिसमें हाथी, बंदर, कुत्ता, बिल्ली और… शेर भी शामिल हैं।

चिंटू पूछता है, “पापा, क्या आप भी इस चार्ट में से हो?”

नेताजी के चेहरे पर इस बार कोई प्रतिक्रिया नहीं। बस चुप्पी… और एक लंबी साँस।

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