@शब्द दूत ब्यूरो (04 मार्च, 2024)
अगले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव 2024 होने जा रहे हैं और इसके लिए सभी राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण सेट करने में लग गए हैं. उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक माहौल बना हुआ है. लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के इस सबसे बड़े प्रदेश पर सभी की नजर है क्योंकि यहां के चुनाव परिणाम यह तय करते हैं कि केंद्र में किसकी सरकार बनेगी. प्रदेश की चर्चित लोकसभा सीटों में शुमार सहारनपुर संसदीय सीट की अपनी खासियत रही है. 2019 के चुनाव में यह सीट उन सीटों में शामिल रही है जहां पर भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजलुर्रहमान ने जीत हासिल की थी. विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA ने यहां पर कांग्रेस के इमरान मसूद को उतारा है.
सहारनपुर लोकसभा सीट पर 2019 में बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली थी. इस संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें 3 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है तो 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले की बेहट सीट एसपी, सहारनपुर नगर सीट बीजेपी, सहारनपुर देहात सीट एसपी, देवबंद सीट बीजेपी और रामपुर मनिहारान सीट बीजेपी के खाते में गई थी. 2019 के चुनाव में बसपा को यह लोकसभा सीट मिली थी, लेकिन 2022 में यहां पर हुए विधानसभा चुनाव में बसपा को किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो सकी थी. खास बात यह है कि इस लोकसभा चुनाव में प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी के बीच आपसी गठबंधन था और इस वजह से यह सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में आई थी.
त्रिकोणीय चुनाव में BSP को मिली जीत
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर त्रिकोणीय चुनाव हुआ था. बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजलुर्रहमान ने भारतीय जनता पार्टी के राघव लखनपाल को हराया था. हाजी फजलुर्रहमान को 514,139 वोट मिले तो राघव लखनपाल को 491,722 वोट मिले. चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही और उसके उम्मीदवार इमरान मसूद को 207,068 वोट मिले थे. फजलुर्रहमान ने 22,417 मतों के अंतर से यह जीत हासिल की थी.
तब के चुनाव में सहरानपुर लोकसभा सीट के तहत कुल 16,77,662 वोटर्स थे जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 9,02,094 थी जबकि महिला वोटर्स की संख्या 7,75,492 थी. इनमें से कुल 12,31,746 (73.7%) वोटर्स ने वोट डाले थे. नोटा के पक्ष में 4,284 (0.3%) वोट पड़े थे. चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को 2 हजार से भी कम वोट मिले थे.
सहारनपुर संसदीय सीट का राजनीतिक इतिहास
सहारनपुर संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो कभी यह सीट कांग्रेस के कब्जे में हुआ करती थी, लेकिन 1991 से लेकर अब तक के चुनावी परिणाम को देखें तो यह सीट किसी पार्टी के कब्जे में नहीं रही है. 1989 और 1991 में जनता दल के राशिद मसूद को जीत मिली थी. तो 1996 में बीजेपी के नकली सिंह सांसद बने थे और उन्होंने 1998 में भी जीत हासिल की थी. 1998 का चुनाव नकली सिंह के लिए बेहद शानदार रहा था क्योंकि उन्होंने इस चुनाव में बसपा के संस्थापक कांशीराम को हराया था. राशिद मसूद तीसरे स्थान पर रहे थे. कांशीराम को हराकर नकली सिंह चर्चा में आ गए थे.
1999 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने यहां से अपनी पहली जीत दर्ज की और मंसूर अली खान सांसद बने. 2004 के लोकसभा चुनाव में राशिद मसूद को जीत मिली. इस बार वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. जबकि इससे पहले 2 बार जनता दल के टिकट पर सांसद चुने गए थे. 2009 में बसपा के जगदीश सिंह राणा सांसद चुने गए. लेकिन 2014 के चुनाव में मोदी लहर में यह सीट फिर से बीजेपी के खाते में आ गई और राघव लखनपाल सांसद चुने गए. 2019 के चुनाव में बसपा और सपा मिलकर चुनाव लड़े और बीजेपी को हराने में कामयाब रहे थे.
2011 की जनगणना के मुताबिक, सहारनपुर की कुल आबादी 3,466,382 है जिसमें पुरुषों की संख्या 1,834,106 थी जबकि महिलाओं की आबादी 1,632,276 थी. जिले की साक्षरता दर 70.49 फीसदी थी. लिंगानुपात की बात करें प्रति हजार पुरुषों पर 890 महिलाएं हैं. हालांकि ये आंकड़े 2011 के हैं और 2021 के जनगणना के आंकड़े आए नहीं हैं, ऐसे में इन संख्या में वृद्धि होने के आसार हैं.
धर्म के लिहाज से देखें तो सहारनपुर जिले में हिंदू और मुसलमानों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है. जिले में हिंदुओं की आबादी 56.74% यानी 1,966,892 है तो मुस्लिम समाज की आबादी 41.95% (1,454,052) है. तीसरे नंबर पर सिख समाज की आबादी है जो 18,627 है.
सहारनपुर जिले का इतिहास
सहारनपुर जिले का इतिहास बहुत पुराना है. पुरातात्विक सर्वेक्षण के जरिए यह बात साबित हो चुकी है कि यहां पर 2000 ईसा पूर्व से पहले भी लोगों के रहने के लक्षण मिले हैं. निश्चित रूप से यह भी कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता के साथ जुड़ा हुआ है. यहां के अंबकेरी, बड़गांव, हुलास और नसीरपुर हड़प्पा सभ्यता के केंद्र हुआ करते थे. इन जगहों पर हड़प्पा कालीन सभ्यता की कई चीजें मिली हैं.
मध्य काल में देखें तो इल्तुतमिश के दौर में सहारनपुर गुलाम वंश का हिस्सा बन गया था. कहा जाता है कि साल 1340 में शिवालिक राजाओं के विद्रोह को कुचलने के लिए मोहम्मद बिन तुगलग उत्तरी दोआब तक पहुंच गया था. वहां उसे एक सूफी संत के बारे में जानकारी मिली. फिर वह उनसे मिलने आया और फिर आदेश दिया कि इस जगह को शाह हरुण चिस्ती के नाम पर शाह-हारनपुर के नाम से ही जाना जाए.
बदलते दौर में शहर की पहचान बदलती रही. मुगल काल में सुल्तान अकबर ने सहारनपुर में नागरिक प्रशासन की स्थापना की और यहां के लिए एक गवर्नर नियुक्त किया. सहारनपुर की जागीर राजा सहा रणवीर सिंह को देकर सम्मानित किया गया और इन्होंने ही सहारनपुर शहर की स्थापना की थी. हालांकि तब सहारनपुर एक छोटा सा गांव हुआ करता था और सेना का केंट क्षेत्र था. लेकिन यह भी है कि यहां का अधिकांश हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ करता था.
फिर 1803 में सहारनपुर मुगलों के हाथ से निकलकर अंग्रेजों के पास आ गया. बाद में आजादी के लिए दारूल उलूम देवबंद के संस्थापकों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में हिस्सा भी लिया. 1867 में मौलाना नानोत्वादी और मौलाना राशिद अहमद गंगोह ने देवबंद में एक स्कूल की स्थापना की थी, जो बाद में दारूल उलूम नाम से प्रसिद्ध हो गया. प्रसिद्ध क्रांतिकारी मौलाना महमूदुल हसन यहां के शुरुआती छात्र थे. देवबंद मदरसा मुसलमानों के उत्थान को लेकर सक्रिय रहा और फिर राष्ट्रवाद की ओर बढ़ गया. 1857 के विद्रोह में भी देवबंद की अहम भूमिका रही थी.