@शब्द दूत ब्यूरो (03 जनवरी 2024)
भारतीय संस्कृति को प्रदूषित कर रहा है प्री वेंडिंग शूट। इन दिनों देश भर में विवाह पूर्व दूल्हा दुल्हन का प्री वेंडिंग शूट का प्रचलन बढ़ रहा है। पर क्या सनातन संस्कृति और भारतीय मूल्यों की रक्षा इससे हो रही है। ये एक चर्चा का विषय बन गया है। जहां कुछ लोग इसे आधुनिकता की दुहाई देकर सही ठहरा रहे हैं वहीं इसे संस्कृति पर हमला भी बताया जा रहा है।
ये तो सच है कि भारतीय संस्कृति में कहीं भी प्री वैडिंग शूट को मान्यता नहीं मिली है। इसमें जितनी गलती जोड़ों की होती है उतनी ही फोटो खीचने वाले की भी, उसे तो अपने परफेक्ट शॉट के लिए कोई भी पोज बनवाने के लिए कोई आपत्ति नहीं होगी पर कम से कम उन जोड़ों को तो ध्यान देना चाहिए ना कि कल को वो ऐसी फोटो किसको दिखा पाएंगे और जो देखेगा वो खुद शर्म से पानी पानी हो जाएगा।
इन्हीं सब कारणों से समाज में गलत संदेश जाता है कि लोग शादी से पहले ही खुलेआम यह सब कर रहे है, ऐसे उल्टे सीधे पोज बनाना, सोशल मीडिया पर उनको सांझा करना कहां की समझदारी है ?प्री-वेडिंग शूट कुरीति बनकर सामने आ रहा है। इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। रिश्ते टूट रहे हैं। इसलिए हम समाज को इस संबंध में जागरूक कर रहे हैं।
शादी से पहले लड़का-लड़की किसी हिल स्टेशन, समुद्र के किनारे जाकर गलबहियां डाले वीडियो-फोटो शूट करवा रहे हैं। फिर उसे शादी के दिन रिसेप्शन पार्टी में सार्वजनिक रूप से प्रोजेक्टर पर प्रदर्शित किया जा रहा है। कुछ वीडियो ऐसे हैं, जिन्हें समाज के लोग देखकर शर्मिन्दगी महसूस करने लगे हैं।
समाज के लोगों की चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं आने वाले दिनों में अश्लीलता चरम सीमा को न लांघ जाए। किसी रिसेप्शन पार्टी में प्री वेडिंग शूटिंग देखकर समाज के उन युवक-युवतियों का मन भी शूटिंग करवाने के लिए मचलने लगा है, जिनका निकट भविष्य में विवाह होने जा रहा है।
भविष्य में कहीं समाज के युवाओं पर इसका गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए प्री वेडिंग शूटिंग करवाने और इसका समाज में सार्वजनिक प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध लगाने की आवाज बुलंद होने लगी है। भविष्य में कहीं समाज के युवाओं पर इसका गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए प्री वेडिंग शूटिंग करवाने और इसका समाज में सार्वजनिक प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध लगाने की आवाज बुलंद होने लगी है। फोटोग्राफर्स के लिए ये एक मोटी कमाई का जरिया है इसलिए वह इस कुरीति को भारतीय संस्कृति में फैलाने को लेकर ज्यादा दोषी माने जाने जा रहे हैं।
हिन्दू संस्कृति में विवाह एक संस्कार था, और वही उसकी विशिष्टता थी। विवाह संस्कार में आध्यात्मिकता निहित थी ! किन्तु आज जन्म जन्मान्तर का माना जाने वाला यह अटूट बंधन पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगकर विकृत होता जा रहा है ! यह आज भावो और हृदयों का बंधन न रहकर आर्थिक बंधन का एक उत्सव बन चुका है ! वर्तमान में हम देखते है कि विवाह को एक पवित्र संस्कार न मानकर एक संविदा मान लेने की मूर्खता हमारे समाज में की जा रही है ! पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का अन्धानुकरण भारतीय जीवन के प्रत्येक पक्ष को दिग्भ्रमित कर रहा है !