मजे की बात तो यह है कि जिन लोगों ने लालू यादव के खिलाफ केस दर्ज कराया, वह बाद में उनके ही सहयोगी हो गए। लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले के मामलों में जब कार्रवाई का सिलसिला शुरू हुआ तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वालों में शिवानंद तिवारी का नाम अहम है।
@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (23 फरवरी, 2022)
अपनी उम्र के चौथे पड़ाव में लालू यादव जेल की सलाखों के पीछे रहने को मजबूर हैं। लालू अपनी इस हालत के लिए भाजपा और आरएसएस को कोसते हैं। प्रकारांतर से या सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हैं।
उनकी बेटी रोहिणी आचार्य तो नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रेणु देवी, विनायक दामोदर सावरकर तक को कोसने से भी बाज नहीं आती हैं। रोहिणी ने तो न्यायपालिका को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव न्याय यात्रा निकालने का ऐलान कर चुके हैं तो छोटे बेटे तेजस्वी यादव पूरे प्रकरण के लिए सीबीआइ को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं।
मजे की बात तो यह है कि जिन लोगों ने लालू यादव के खिलाफ केस दर्ज कराया, वह बाद में उनके ही सहयोगी हो गए। लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले के मामलों में जब कार्रवाई का सिलसिला शुरू हुआ तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वालों में शिवानंद तिवारी का नाम अहम है।
शिवानंद आज लालू के नजदीकी हैं। राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। शिवानंद के बेटे लालू की पार्टी से विधायक हैं। इनके अलावा वृषिण पटेल और प्रेमचंद मिश्रा जैसे नेताओं का नाम भी चारा घोटाले को सामने लाने में अहम रहा और ये नेता भी बाद में लालू यादव के करीबी बन गए।
लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले का मामला जब सामने आया तब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। राव की सरकार के रहते ही पटना हाई कोर्ट के आदेश पर चारा घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआइ को सौंप दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया और निर्देश दिया की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में ही हो। लालू के खिलाफ जांच जोर पकड़ती इसके पहले ही कांग्रेस की सरकार चली गई।
बीच में केवल 16 दिनों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। यह सरकार गिर गई और लालू यादव को वह मौका हाथ लगा, जिसका इस्तेमाल वह चारा घोटाले की जांच को कमजोर करने के लिए करना चाहते थे।
संसदीय चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 के बीच बारी-बारी एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी। लालू यादव की पार्टी इन दोनों सरकारों का हिस्सा रही। इसी दौरान चारा घोटाले में लालू यादव के खिलाफ कार्रवाई तेजी से आगे बढ़ी। इसी दौरान लालू को अदालत के सामने समर्पण करना पड़ा।
इसी दौरान उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसी दौरान वे चारा घोटाले के मामले में पहली बार जेल गए। इसके बाद वाजपेयी की सरकार में भी लालू के खिलाफ मुकदमा अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा। वाजपेयी की सरकार करीब छह साल ही रही। इसके बाद कांग्रेस को 10 साल राज करने का मौका मिला। इस सरकार में भी लालू यादव प्रमुख सहयोगी रहे। इस दौरान मुकदमा बदस्तूर चलता रहा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने इस मसले पर लालू यादव और उनकी पार्टी राजद को आईना दिखाया। उन्होंने बताया कि चारा घोटाले में लालू यादव को पहली सजा भाजपा की सरकार में नहीं बल्कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार के दौरान हुई थी। मोदी ने कहा कि अगर लालू यादव को भाजपा ने फंसाया तो उनकी सहयोगी कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने 10 साल के दौरान उन्हें बचाने के लिए कुछ भी क्यों नहीं किया।