@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (21 फरवरी, 2022)
भारत में 400 से भी ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। इन नदियों का देश के धर्म और संस्कृति समेत अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान है। आमतौर पर नदियां पहाड़ों से निकलती हैं तो आखिर पड़ाव में किसी समुद्र में जाकर मिल जाती हैं।
जैसे हिमालय के गंगोत्री से निकली गंगा नदी गंगा सागर में मिल जाती है। वहीं हमारे देश में एक नदी ऐसी भी है, जो निकलती तो पहाड़ों से ही है लेकिन किसी समुद्र में नहीं मिलती। मतलब ये कि इसका संगम किसी भी समुद्र के साथ नहीं होता।
हम बात कर रहे हैं लूनी नदी की। लूनी नदी का उद्गम राजस्थान के अजमेर जिले में 772 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नाग की पहाड़ियों से होता है। ये नदी अजमेर से निकल कर दक्षिण-पश्चिम राजस्थान नागौर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर, जालौर जिलों से होकर बहती हुई गुजरात के कच्छ ज़िले में प्रवेश करती है और कच्छ के रण में विलुप्त हो जाती है।
राजस्थान के जालोर जिले में लूनी नदी के बहाव क्षेत्र को नेड़ा या रेल कहते हैं। लूनी का प्रवाह क्षेत्र गोडवाड़ प्रदेश कहलाता है. महाकवि कालीदास ने लूनी नदी को अन्तः सलिला नदी कहा था। अजमेर की पुष्कर घाटी में लूनी नदी को साक्री नदी के नाम से भी जाना जाता है। जोवाई, सुकरी और जोजारी इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। राजस्थान में सर्वाधिक नदियों वाला जिला उदयपुर है। बीकानेर और चूरू दो ऐसे जिले है जिनमें एक भी नदी नहीं बहती है।
495 किलोमीटर लंबी यह नदी अपने क्षेत्र की एकमात्र प्रमुख नदी है, जो एक बड़े हिस्से की सिंचाई करती हुई गुजरात पहुंचती है। राजस्थान में इस नदी की कुल लंबाई 330 किलोमीटर है, जबकि इसका बाकी हिस्सा गुजरात में बहता है।
लूनी नदी की एक बेहद ही खास बात है। अजमेर से लेकर बाड़मेर तक तो इस नदी का पानी मीठा है, जबकि इसके आगे निकलते ही इसका पानी खारा हो जाता है। इसकी वजह ये कि जब ये राजस्थान के रेगिस्तान से होकर गुजरती है तो उसमें मौजूद नमक के कण इसमें मिल जाते हैं तो पानी खारा हो जाता है।
इस नदी के सुंदर और प्राकृतिक नज़ारों को देखने का सबसे अच्छा समय मानसून का वक्त होता है. इसके अलावा यहां मार्च में हर साल थार महोत्सव भी आयोजित किया जाता है. राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर की कला, संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देने के उदेश्य से इस तीन दिवसीय थार महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इस महोत्सव में देसी और विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगता है।