वो साल था 1995। लखनऊ के कैंट इलाके में एक अनौपचारिक पार्टी चल रही थी। लोग बातों में मशगूल थे। हंसी-ठहाकों का दौर चल रहा था। इसी दौरान युवा अखिलेश यादव की नजर पहली बार डिंपल पर पड़ी। यह पहला मौका था जब दोनों मिले थे। अखिलेश ने हाल ही में मैसूर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। जबकि 17 साल की डिंपल रावत तब आर्मी पब्लिक स्कूल में पढ़ रही थीं। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के ताकतवर राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखते थे। वहीं डिंपल के पिता एससी रावत उस वक्त सेना में बतौर कर्नल अपनी सेवा दे रहे थे और बरेली में पोस्टेड थे।
दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हुआ। अखिलेश और डिंपल अक्सर लखनऊ कैंट के सूर्या क्लब या महमूद बाग क्लब में मिला करते थे। साल भर बाद यानी साल 1996 में अखिलेश ने एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की पढ़ाई के लिए सिडनी जाने का फैसला लिया। लेकिन वे वहां भी डिंपल को नहीं भूले। अखिलेश अक्सर डिंपल को पत्र लिखा करते थे और कई बार पत्र के साथ ग्रीटिंग कार्ड भी भेजते थे। जब वे पढ़ाई कर वापस लौटे तो डिंपल से शादी का फैसला किया।
वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन अखिलेश यादव की जीवनी ”विंड्स ऑफ चेंज” में लिखती हैं कि अखिलेश और डिंपल के बीच जमीन आसमान का अंतर था। दोनों दो अलग-अलग जाति से ताल्लुक रखते थे, एक यादव और दूसरा ठाकुर। एक और समस्या यह थी कि उस वक्त अलग उत्तराखंड की मांग चरम पर थी। साल 1994 में मुलायम के मुख्यमंत्री रहते मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर अलग राज्य की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। पहाड़ से ताल्लुक रखने वाले लोग इसके लिए मुलायम को जिम्मेदार मानते थे और उनसे बेहद खफा हो गए थे।
इस तनाव के बीच अखिलेश ने अपने परिवार को डिंपल के साथ अपने रिलेशनशिप के बारे में बताने का फैसला लिया। अखिलेश अपनी दादी मूर्ति देवी के बेहद करीब थे और सबसे पहले उन्हें ही अपने रिलेशनशिप के बारे में बताया। हालांकि अखिलेश को भरोसा नहीं था कि उनकी दादी इतनी जल्दी मान जाएंगी। सुनीता एरॉन लिखती हैं कि जब अखिलेश ने अपनी दादी को रिलेशनशिप के बारे में बताया और कहा कि वे डिंपल से शादी करना चाहते हैं तब उन्होंने कहा, ‘तुम किसी भी दूसरी जाति में शादी करो, पर करो जल्दी।’
धीरे-धीरे बात मुलायम सिंह यादव तक भी पहुंची। उस वक्त वे केंद्रीय रक्षा मंत्री हुआ करते थे। उन्हें अखिलेश के जिद्दी स्वभाव के बारे में बखूबी पता था और कहा करते थे कि टीपू को कोई जल्दी नहीं मना सकता। हालांकि मुलायम के मन में तमाम तरह की शंकाएं थीं। मुलायम डिंपल के खिलाफ नहीं थे, लेकिन उन्हें अलग उत्तराखंड की मांग कर रहे एक्टिविस्टों का डर था कि कहीं वे हंगामा न खड़ा कर दें।
ऐसे में उन्होंने अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को जिम्मेदारी सौंपी कि वह अखिलेश को मनाएं और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराएं। चूंकि अखिलेश ने बचपन का काफी वक्त शिवपाल के साथ गुजारा था, ऐसे में मुलायम को भरोसा था कि शायद अखिलेश मान जाएं! हालांकि अखिलेश ने डिंपल से शादी का पूरा मन बना लिया था।
वो दौर ऐसा था जब अमर सिंह और मुलायम की दोस्ती की मिसालें दी जाती थीं। अमर सिंह तब समाजवादी पार्टी के महासचिव थे और मुलायम सिंह के दाहिने हाथ कहे जाते थे। अखिलेश यादव उन्हें अंकल कह कर बुलाया करते थे। अखिलेश के मैसूर से लेकर सिडनी तक एडमिशन और दूसरी तमाम चीजों का ख्याल अमर सिंह ही रखते थे।
अखिलेश यादव की जीवनी के मुताबिक अमर सिंह, अखिलेश की शादी बिहार के एक ताकतवर राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाले नेता की बेटी से कराना चाहते थे। तब मीडिया में ऐसी खबरें भी आईं कि उस वक्त वह नेता अपनी बेटी के साथ लखनऊ भी पहुंच गए थे। हालांकि अखिलेश, डिंपल से अपने रिश्ते को लेकर साफ थे।
बाद में मुलायम ने अपने कई पहाड़ी दोस्तों से भी अखिलेश और डिंपल की शादी को लेकर सलाह-मशविरा किया, जिसमें सूर्यकांत धस्माना भी शामिल थे। जो डिंपल के परिवार के काफी करीब थे और दोनों का गांव अगल-बगल था। तमाम बातचीत के बाद तय किया गया कि दोनों की शादी करा दी जाए।
मुलायम को मनाने में अमर सिंह ने भी अहम भूमिका निभाई थी। इस तरह, 24 नवंबर 1999 को सैफई स्थित मुलायम के पैतृक गांव में अखिलेश और डिंपल की बेहद धूमधाम से शादी हुई। शादी का तमाम अरेंजमेंट अमर सिंह ने ही किया था। शादी में किसको किसको बुलाना है, सियासत से लेकर सिनेमा तक के मेहमानों की लिस्ट से लेकर मेन्यू तक उन्होंने ही फाइनल किया था।