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कोरोना के खात्मे के लिए भारत में दी जाएंगी दो वैक्सीन, जानिए कैसे करती हैं काम 

@शब्द दूत ब्यूरो

नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी को मात देने के लिए भारत तैयार है। देश में निर्मित वैक्सीन के साथ भारत में दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रमों में से एक की शुरुआत हो चुकी है। सबसे पहले तीन करोड़ स्वास्थ्य एवं फ्रंटलाइन कर्मचारियों को कोरोना वैक्सीन लगाई जाएगी। इसके बाद 50 साल से अधिक उम्र या गंभीर मामले वाले 27 करोड़ लोगों को टीका दिया जाएगा। आइए जानते हैं भारत में इस्तेमाल होने वाली दो वैक्सीन- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के पीछे की तकनीक के बारे में।

यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने मिलकर कोविशील्ड को विकसित किया है और पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इसका विर्निर्माण किया है। भारत जैसे देशों के लिए कोविशील्ड बहुत ही अहम वैक्सीन बनकर उभरी है, जहां लागत और लॉजिस्टिक्स काफी मायने रखते हैं।

कोविशील्ड एक वेक्टर वैक्सीन है, जो धीमा असर दिखाती है, लेकिन काफी किफायती है और सबसे अहम बात है कि इसे मानक रेफ्रिजरेटर तापमान पर छह महीने तक रखा जा सकता है। यानी देश को अपने कोल्ड स्टोरेज चेन में ज्यादा बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी। इसके उलट फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन, नई तकनीक एमआरएनए पर आधारित है, जो कि बहुत ही जटिल है और इन वैक्सीन के लिए काफी कम तापमान की जरूरत होती है।

कोविशील्ड वैक्सीन कॉमन कोल्ड वायरस या एडिनो वायरस का एक कमज़ोर किया गया रूप है, जो चिंपांजी में पाया जाता है, लेकिन मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता है। यह कोशिकाओं से जुड़ जाता है और डीएनए इन्जेक्ट करता है, जो कि कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन पैदा करता है। वायरस की सतह पर मौजूद संरचना इसे सेल से चिपकने में सहायता करती है। यह वास्तविक संक्रमण होने पर कोरोना वायरस पर हमला करने के लिए प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करता है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की ओर से ब्रिटेन में प्रकाशित शोध नतीजों में इस वैक्सीन को करीब 70 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है।

भारत की बायोटेक्नोलॉजी कंपनी भारत बायोटक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा विकसित कोवैक्सीन दूसरी वैक्सीन है, जिसे सरकार की ओर से आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिली है। 

कोवैक्सीन कोरोना वायरस के इनएक्टिवेटेड वायरस (निष्क्रिय वायरस) पर आधारित वैक्सीन है। वैक्सीन निर्माण की यह सबसे पुरानी तकनीकों में से एक है। इसमें निष्क्रिय वायरस का उपयोग किया गया है, जिसे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करने के लिए इन्जेक्ट किया जाता है। वायरस को केमिकल या हीट के माध्यम से निष्क्रिय कर वैक्सीन तैयार की गई। इसमें पूरा का पूरा निष्क्रिय वायरस लोगों को वैक्सीन के रूप में दिया जाता है। चीन की दवा कंपनियां भी अपने कोरोना वायरस टीके के निर्माण में इसी तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं।

कोवैक्सीन को लेकर अभी कुछ चिंताएं बरकरार है, क्योंकि कोविशील्ड और फाइजर एवं मॉडर्ना की तरह क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में इसकी प्रभावकारिता अब तक साबित नहीं हुई है। ट्रायल के दो चरणों में आमतौर पर पता लगाया जाता है कि वैक्सीन सुरक्षित है जबकि तीसरे फेज में यह पता लगाया जाता है कि वैक्सीन प्रभावी है या नहीं। कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल अभी चल रहा है।

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