कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका वाड्रा के पति राबर्ट वाड्रा ने राजनीति में आने की इच्छा जताई है। उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग केस में जांच एजेंसियों की पूछताछ का हवाला देकर कहा कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, इसलिए उन्हें लगता है कि अब उन्हें संसद पहुंचना चाहिए।
राबर्ट वाड्रा ने कहा, “मैं एक ऐसे परिवार से संबंधित हूं, जिसने पीढ़ियों से इस देश के लोगों की सेवा की है और देश के लिए शहीद भी हुए हैं। मैंने देखा है, सीखा है, अभियान चलाया है। देश के विभिन्न हिस्सों में समय बिताया और मुझे लगता है कि मुझे इसी शक्ति के साथ लड़ने के लिए संसद में रहना होगा।” ऐसा नहीं है कि वाड्रा ने राजनीति में आने की अपनी इच्छा पहली बार प्रकट की है। वो लंबे समय से ऐसा कर रहे हैं। तो सवाल उठता है कि आखिर उन्हें रोक कौन रहा है और क्यों?
रॉबर्ट वाड्रा ने कहा कि स्पष्ट रूप से अब मुझे लगता है कि मैंने बहुत लंबे समय तक बाहर लड़ाई लड़ी है। मैंने खुद को समझाया है, लेकिन यह लगातार हो रहा है कि वे मुझे परेशान करते हैं, क्योंकि मैं राजनीति में नहीं हूं। मैं हमेशा राजनीति से दूर रहा क्योंकि मेरा एक निश्चित विश्वास है। वाड्रा ने कहा कि वह उचित समय पर फैसला लेंगे। उन्होंने कहा, “जब मैं एक ऐसी जगह देखूंगा, जहां लोग मुझे प्रतिनिधित्व करने के लिए वोट देंगे और मैं उस क्षेत्र के लोगों के जीवन में एक अंतर ला सकता हूं और अगर मेरा परिवार इसे स्वीकार करता है।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के कारण राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद जब सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी स्वीकार की थी तब कांग्रेस हेडक्वॉर्टर के बाहर होर्डिंग्स लगे थे। इस होर्डिंग में राहुल, प्रियंका के साथ रॉबर्ट वाड्रा की भी तस्वीर थी। लोकसभा चुनाव के दौरान भी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पोस्टर दिखा जिसमें वाड्रा से चुनाव लड़ने का आह्वान किया गया था। उससे पहले, 2016 में भी कांग्रेस की तरफ से आयोजित ‘प्रजातंत्र बचाओ मार्च’ के आह्वान वाले पोस्टर में वाड्रा, राहुल गांधी के साथ दिखे थे।
रॉबर्ट वाड्रा ने कहा कि पूरा परिवार विशेष रूप से प्रियंका उनके फैसलों का समर्थन करती हैं। उन्होंने कहा, “प्रियंका हमेशा सपोर्टिव हैं। मैं पूरे परिवार के बारे में बात कर रहा हूं और जब वे इसे मंजूरी देंगे तो मैं राजनीति में आ सकता हूं और राजनीतिक क्षेत्र में अपने मुद्दों के लिए लड़ सकता हूं।” वाड्रा ने रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार किया है और उनके समर्थन में मुरादाबाद में होर्डिंग्स लगाए गए हैं क्योंकि उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अपना बचपन उस जगह पर बिताया है और लोग चाहते हैं कि वे वहां रहें।
वाड्रा ने 6 फरवरी, 2012 को उत्तर प्रदेश के अमेठी में कहा था, “अगर लोग चाहेंगे तो मैं राजनीति में आने के खिलाफ नहीं हूं।” लेकिन तब प्रियंका गांधी ने मीडिया पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाते हुए अपने पति के पॉलिटिक्स में एंट्री की संभावनाओं को संकेतों में ही साफ कर दिया था।
मीडिया ने जब वाड्रा से फिर से सवाल किया तो उन्होंने कहा, “मैं पिछले 15 दिनों से अमेठी और रायबरेली में हूं… मैं जानता हूं कि मुझमें परिवर्तन लाने की क्षमता है। मेरे विचार से किसी भी चीज का समय और स्थान होता है।” मतलब साफ है कि प्रिंयका की ना-नुकुर के बावजूद वाड्रा का राजनीति के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ।
आखिर वाड्रा की राजनीतिक आकांक्षा की राह कौन सी बाधाए हैं? आखिर खुद प्रियंका अपने पति को राजनीति में आने से रोक रही हैं? अगर हां तो क्यों? इन सवालों के जवाब इतने आसान तो नहीं, लेकिन सामान्य समझ कहती है कि लैंड डील में फंसे वाड्रा को राजनीति में उतरते ही खानदान और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस पर कुठाराघात करने वाली बीजेपी की बांछें खिल जाएंगी। उसे गांधी परिवार को वंशवादी और भ्रष्टाचारी राजनीति की पोषक साबित करने में थोड़ी और मदद मिल जाएगी। दूसरी तरफ प्रियंका गांधी की राजनीति प्रभावित होने की आशंका भी खारिज नहीं की जा सकती है। प्रियंका अगर भ्रष्टाचार और अवैध लेनदेन, अनैतिक रूप से संपत्ति अर्जित करने जैसे मामलों में वाड्रा की तरफ से सफाई देंगी तो स्वाभाविक है उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बट्टा लगेगा।