@विनोद भगत
काशीपुर । कोरोना महामारी के बीच एक और बीमारी बाजार में बिक रही है। तरबूज का नाम सुनते ही आपके मन में मीठे और रसीले फल का स्वाद आने लगता है। लेकिन बाजार से खरीद कर आप जो तरबूज लाये हैं वह आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है।
ऐसा ही आज काशीपुर में देखने को मिला है। आवास विकास निवासी मनोज विश्नोई ने आज बाजार से एक तरबूज खरीदा जिसे उन्होंने घर लाकर फ्रिज में ठंडा करने के लिए रख दिया। एक घंटे बाद जब उन्होंने उसे काटा तो हैरत में पड़ गए। तरबूज काटते ही उसमें से सफेद झाग और गैस निकलने लगी साथ ही बदबू भी फैल गई। उन्होंने शब्द दूत को बताया कि वह जसपुर खुर्द में एक तरबूज विक्रेता से लाये थे। उन्होंने तरबूज पर हल्का सा कट लगाते ही उसमें से झाग निकलता देखा तो उसका एक वीडियो बना लिया जो उन्होंने शब्द दूत को भेजा है।
शब्द दूत ने तब इस मामले की विस्तृत जानकारी ली। और नागरिकों के स्वास्थ्य हित को देखते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।
शब्द दूत को पता चला कि शहर में जो भी रसीले व मीठे फल वह जजहरीले भी हो सकते हैं दरअसल इन फलों का इजेक्शन पद्धति द्वारा विकास कर बेचा जा रहा है। खास बात यह है कि इंजेक्शन से तैयार कर बेचे जाने वाले फलों में विशेषकर तरबूज, ककड़ी, खरबूजा, पपीता प्रजाति के कुछ जलीय फल है। यह फल देखने में तो बड़े और रसीले होते हैं पर इनका स्वाद फीका होता है। स्वादहीन होना यह साबित करता है कि इस प्रकार के फलों को अपरिपक्व अवस्था में ही तोड़कर इजेक्शन के माध्यम से इसका आतरिक व बाहरी विकास कर आकíषत बनाया गया है, जिसे उपभोक्ता महगे भाव से खरीद कर घर ले जाता है। मगर काटने के बाद पता चलता है कि इसमें तरबूज का स्वाद ही नहीं है। उपभोक्ता पैसा लगाने के बाद भी तरबूज का असली मजा नहीं उठा पाता, बल्कि फल में केमिकल युक्त लगे इंजेक्शनों से विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों से जरूर घिर जाता है। संक्रामक बीमारियों में पेट दर्द, उल्टियां, बदहजमी, हिचकी, दस्त और मूत्र मार्ग में विकार आदि शामिल है।
जो जानकारी मिली है वह काफी चौंकाने वाली है। फलों का आकार, गिरी की लाली व फल में पानी की मात्रा आदि बढ़ाने हेतु इजेक्शनों और विभिन्न प्रकार के केमिकल युक्त घोलों का प्रयोग किया जाता है, जिससे फल कई-कई दिनों तक तरोताजा दिखता है मगर इजेक्शनों व केमिकल आदि के प्रयोग के बाद फल के स्वाभाविक स्वाद व गुणों में भारी परिवर्तन आ जाता है। यही नहीं हरी सब्जिया, जिनमें सीताफल (पेठा), लौकी, घीया, तोरी सहित अनेक सब्जियों में भी इसी प्रकार के केमिकल्स का प्रयोग कर उनका आकार बढ़ाया जाता है। कई बार तो सब्जियों को रातोंरात तैयार करने के लिए उनकी बेलों की जड़ों में ही केमिकल्स युक्त सुइयां घोंप दी जाती है, जिसके असर से एक रात में ही वह विशेष सब्जी या फल अपना आकार दोगुना-तीन गुणा कर लेता है, मगर गुणों में अत्यधिक परिवर्तन आ जाता है।
बहरहाल स्थानीय प्रशासन को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए वर्ना कोरोना महामारी के बीच नगरवासियों को एक और स्वास्थ्य परेशानी से जूझना पड़ सकता है।