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गौशालाओं में बड़ा घोटाला, 30 करोड़ का गोबर खा गये,कोई हिसाब नहीं, खुल रही परत दर परत

जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार बीते दो वर्षों में करीब 30 करोड़ रुपये की राशि गोवंश के चारे और अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर खर्च की गई, मगर गोशालाओं से गोबर की बिक्री का कोई औपचारिक रिकॉर्ड नहीं प्रस्तुत किया गया है।

@शब्द दूत ब्यूरो (06 जुलाई 2025)

रायबरेली जिले की गोशालाओं में सरकारी धन के दुरुपयोग और घोटाले की परतें अब खुलकर सामने आने लगी हैं। गौवंश के संरक्षण और पालन के नाम पर प्रशासन द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किए गए, मगर जब जांच की बारी आई तो गोबर का कोई हिसाब नहीं मिला। जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार बीते दो वर्षों में करीब 30 करोड़ रुपये की राशि गोवंश के चारे और अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर खर्च की गई, मगर गोशालाओं से गोबर की बिक्री का कोई औपचारिक रिकॉर्ड नहीं प्रस्तुत किया गया है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार की योजना के तहत हर ब्लॉक में अस्थायी गोशालाओं का निर्माण कराया गया था, जहां आवारा और बेसहारा गोवंश को आश्रय देने के साथ-साथ उनके लिए चारे-पानी की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित की जानी थी। जिला पंचायत और संबंधित ग्राम पंचायतों को इसके लिए बड़ी मात्रा में बजट मुहैया कराया गया। लेकिन अब जो जानकारी सामने आ रही है, वह न केवल प्रशासनिक लापरवाही का संकेत दे रही है, बल्कि एक संगठित घोटाले की आशंका को भी जन्म दे रही है।

कहां गया गोबर?

प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि चारा खपाने और गोवंश की संख्या दिखाने में तो गांवों और गोशालाओं के जिम्मेदार लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन इन गोशालाओं में रोजाना सैकड़ों किलो गोबर निकलने के बावजूद उसकी बिक्री, खाद निर्माण या उपयोग का कोई आंकड़ा दर्ज नहीं किया गया है। इससे यह साफ संकेत मिलता है कि या तो गोबर की बिक्री कर उसके पैसे को निजी तौर पर हड़प लिया गया या फिर यह केवल कागजों में ही दर्ज किया गया।

जांच में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

जिलाधिकारी की निगरानी में गठित विशेष जांच टीम ने कुछ प्रमुख गोशालाओं का निरीक्षण किया, जिसमें पाया गया कि कई स्थानों पर गोवंश की संख्या वास्तविक से बहुत कम है। जिन गोशालाओं में 100 से अधिक पशु दर्ज किए गए थे, वहां वास्तव में मात्र 20-25 गायें पाई गईं। इसके बावजूद वहां पूरे चारे की खरीद और भुगतान सरकारी फंड से किया गया।

भ्रष्टाचार की गंध, कार्रवाई तय

इस पूरे मामले में जिला पंचायत राज अधिकारी, पशुपालन विभाग और संबंधित ब्लॉक स्तर के कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। गोशाला संचालन समितियों और ग्राम प्रधानों से जवाब-तलब किया जा रहा है। जिलाधिकारी ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि इस घोटाले में लिप्त किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को बख्शा नहीं जाएगा। जल्द ही एफआईआर दर्ज कर विधिक कार्रवाई भी की जा सकती है।

विपक्ष का हमला

घोटाले की भनक लगते ही विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने इसे “गौ माता के नाम पर लूट” करार दिया है और मुख्यमंत्री से पूरे मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

सवालों के घेरे में सरकार की योजना

गौवंश संरक्षण को लेकर योगी सरकार की प्राथमिकता हमेशा से मुखर रही है, मगर जिस तरीके से इस योजना में धांधली की जा रही है, उसने पूरी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या गौ माता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई को चंद लोगों ने बंदरबांट कर लिया? क्या यह “गोसेवा” के नाम पर “गोटाला” बन चुका है?

अब देखना होगा कि प्रशासन इस प्रकरण में कितनी गहराई तक जांच करता है और क्या दोषियों को वाकई सजा मिलती है या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में ही दफन होकर रह जाएगा।

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